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________________ विशेषार्थ:-. 1. तीर्थ याने पूज्य पुरुषों, जलाशय, पवित्र यात्रास्थल, धर्म-संस्था, पानी में उतरने के स्थान (घाट), नदी आदि जलाशयों का संगम स्थान, प्रथम गणधर, चतुर्विध संघ आदि अनेक अर्थ हैं। 2. इस गाथा में तीर्थ याने जलाशय में उतरने का ढाल-ओवारा, जलाशय में प्रवेश मार्ग ऐसा अर्थ समझना। 3. इस भरतक्षेत्र में गंगा और सिंधु का समुद्र के साथ का संगम स्थान याने जहां से लवण समुद्र में उतर (प्रवेश) सके, ऐसे मागध और प्रभास नाम के दो तीर्थ है इसके अलावा लवण समुद्र में उतरने के लिए बीच में वरदाम नाम का तीर्थ है। 4. इस प्रकार भरत-ऐरावत और महाविदेह की 32 विजयों में तीन-तीन तीर्थ होने से सब मिलाकर कुल एकसो दो (102) तीर्थ होते हैं। 34 4 3 = 102 / 5. हरेक तीर्थ समुद्र के किनारे से 12 योजन दूर मागध आदि तीर्थ के अधिष्ठायक देव की राजधानीवाले मागध आदि द्वीप है। 6. जब चक्रवर्ती दिग्विजय करने के लिए निकलता है तब पहला खंड जीतने के समय पर मागध तीर्थ के पास जाकर छावणी का पडाव डालते है, वहां अट्ठम का तप करने के बाद चार घोडावाला रथ में बैठकर, आधे पहिये पानी में डुबे वहां तक जाकर अपने नामवाला बाण मागध द्वीप की ओर छोडते है। वह बाण 12 योजन जाकर मागध देव की सभा में गिरता है। तब उस बाण को देखकर मागध देव को क्रोध आता है, लेकिन बाण पर चक्रवर्ती का नामादि पढकर ‘नया चक्रवर्ती' उत्पन्न हुआ हैं। ऐसा जानकर शांत होकर भेटना लेकर चक्रवर्ती के पास आते है और “हे देव ! आपके क्षेत्र की सीमा में रहनेवाला मै आपकी आज्ञा में हुं" ऐसा कहकर नम्रता दिखाता है। चक्रवर्ती भेटना तथा बाण लेकर सत्कार पूर्वक उनको विसर्जन करते है। इस प्रकार वरदाम और प्रभास तीर्थ को भी वश करते हैं। ला संग्रहणी सार्थ (161) तीर्थों
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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