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________________ गाथार्थ :-. चार, सात, आठ, नौ, ग्यारह, कूटों को अनुक्रम से सोलह, दो, दो, उनचालीस और दो से गुणा करे तो चारसो सडसठ (467) होते हैं। भूमि कूटों (शिखर) गाथा: चउतीसुविजएसुं.. उसहकूडा अट्ट मेरुजंबुम्मि। अद्वयदेवकुराए, हरिकूडहरिस्सहेसट्ठी॥१७॥ ___(इय अडवनं धरणिकूडा पाठांतरम्) संस्कृत अनुवाद चतुस्त्रिशत्सुविजयेषु,क्रषभकूटान्यष्टौ मेरौजम्ब्वां अष्टौ च देवकुरुषु.हरिकूट हरिस्सही षष्टिः॥१७॥ अन्वय सहित पदच्छेद * चउतीसुं विजएसुंउसह कूडाअट्ठमेरुजंबुम्मि यअट्ठदेवकुराए, हरिकूडहरिस्सहेसट्ठी॥१७॥ शब्दार्थ :चउतीसुं- चौंतीस देवकुराए- देवकुरु क्षेत्र में विजएसुं- विजयों में (शात्मलिवृक्ष के वन में) उसहकूडा- ऋषभकूट हरिकूड- हरिकूट * फूटनोट :1. उसुकूडा' ऐसा पाठ भी है। 2. जंबूद्वीप संग्रहणी मूल में हरिकूड हरिस्सहे सट्टी' पाठ है लेकिन वृत्तिकार ने ‘इय अडवनं धरणिकूडा' पाठ होना चाहिए ऐसा कहा है। | लघु संग्रहणी सार्थ (157) ભૂમિ તો
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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