SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा :परिहि तिलक्ख-सोलस-सहस्सदोयसयसत्तवीसहिया कोसतिगठावीसं.धणुसयतेरंगुलदहियं // 8 // अंत होता है, और दशक संख्या बायी ओर बढती जाती है। संख्या का पठन बांयी ओर से होता है. और गणित (भागाकार के अलावा) दाहिनी ओर से होता है जैसे - 16256 उसका पठन सोलह हजार दो सौ छप्पन होता है और गणित 26256 x 4 = पांच चोक बीसौं वहां से गणित होता है इसलिए - वर्गमूल निकालने की रीत: -अंतिम एकम के अंक का एकी अंक के ऊपर पहले ऐसा निशान करें और बाकी संख्या के ऊपर ऐसा-निशान करो एकी अंक को विषम संख्या कही जाती है और बेकी अंक को सम संख्या कही जाती है। ऐसा निशान करने का कारण यही है कि वर्गमूल का भागाकार करते समय पहले अंक पर विषम निशान हो तो एक ही अंक से वर्गमूल का शोधन शुरु करना, और जो पहले अंक पर सम निशान हो तो दो अंक से वर्गमूल का शोधन करना, और बादमें एकी निशानवाली संख्या क्रमशः उतारनी, क्योंकि एक साथ बडी संख्या का भागाकार तथा वर्गमूल कर नहीं सकते / इसलिए क्रमसर संख्या उतारकर उसका वर्गमूल करते करते पूर्ण संख्या का वर्गमूल कर सकते है। . .. सामान्य भागाकार में एक एक संख्या उतारी जाती है और वर्गमूल में, वर्गमूल खुद अपनी ही संख्या से गुणा हुआ होने से उसका मूल निकालने के लिए दो अंक उतारे जाते है / अब सभी विषम अंक पर / ऐसा निशान करो और सम अंक पर - ऐसा निशान करो। 1) बायें हाथ ओर की विषम चिह्नवाली संख्या तक की संख्या में से ही कोई भी संख्या का वर्ग बाद हो सकता है। उसी वर्ग के मूल को भाजक रखना और भागाकर में भी वही अंक रखना। विषम संख्या ...... बाद भाजक का वर्ग, भाजक का वर्ग का मूल, वही पहला भाजक और वही भागाकार की संख्या, क्योंकि वर्गमूल निकालते समय भाजक की कोई भी संख्या दी हुई नही होती है इसलिए इस तरह से वह पहलेसे ही खोजने की होती है। 2) बाद में विषम निशानवाली संख्या बाकी रहे हुए शेष के आगे रखनी उसमें से बाद (भाजक + भागाकार x 10 + नया भागाकार = निश्चित हुआ नया भाजक X नया भागाकार की संख्या) इस तरह अंत तक सभी संख्यांक पूर्ण हो वहां तक करना। यहां पर समनिशान पहला है इसलिए पहले दो अंक पकडकर विषम संख्या में से वर्गमूल खोजना अथवा - संख्या में से बाद - (कुल भागाकार X 2 X 10 + नया भागाकार = नयाभागाकार X नया भागाकार की संख्या / | लघु संग्रहणी सार्थ (136) जंबूद्वीप का क्षेत्रफल
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy