SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूद्वीप यह द्वीप सभी द्वीपों और समुद्रों के बीच (मध्य) में आया है। जंबुद्वीप के आसपास लवण समुद्र है, उसके आसपास धातकी खंड़ है, उसके आसपास समुद्र, उसके आसपास द्वीप, इस प्रकार असंख्य द्वीप और समुद्र वलयाकार से एक दूसरे को घेरे हुए हैं / इस तरह सभी द्वीप समुद्र जो इस लोक में है उसे. ति लोक या मध्यलोक भी कहते हैं। ति लोक संपूर्णलोक के मध्यभाग में होने से जंबुद्वीप भी लोक के मध्यभाग में है। और समभूतला आदि मर्यादासूचक स्थान और लोक का मध्यभाग भी जंबुद्वीप में है। जंबुद्वीप थाली के जैसा सपाट और वर्तुलाकार का है। उसके आसपास समुद्र होने से उसे द्वीप कहते है। इस द्वीप के मध्य में जंबु के वृक्ष के आकार जैसा पृथ्वीकायमय, शाश्वत, स्थिर, अकृत्रिम महाजंबूवृक्ष है। उसके आसपास दुसरे 12050120 छोटे छोटे शाश्वत जंबुवृक्षों का बना हुआ जंबुवन है और इस द्वीप का अधिष्ठायक अनादृत देव इस महाजंबुवृक्ष पर रहता है। इसलिए इस द्वीप का नाम जंबूद्वीप है। इस जंबूद्वीप में अनेक स्थान और पदार्थ हैं / उनका विस्तार से वर्णन किया जाय तो बडा ग्रंथ हो जाता है। इसलिए उनको जानने के योग्य मुख्य-मुख्य शाश्वत स्थानों की हकीकत अति संक्षेप में समझाई गई है। यह द्वीप लाख योजन लंबा चौड़ा है, इसके मध्यमें मेरू-पर्वत है, इस द्वीप के भरत क्षेत्र के माप के खंड अथवा एक चोरस योजन माप के खंड, परिधि, क्षेत्रफल, मनुष्यों के रहने योग्य क्षेत्र, पर्वत, उनके शिखर, हूद (सरोवर) तीर्थ, विजय, श्रेणियों, नदीयां, नदीओं के मुख, मुख का विस्तार आदि मुख्य-मुख्य पदार्थ इस प्रकारण में समझाया गया है। | लघु संग्रहणी सार्थ (124)
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy