________________ अन्वय सहित पदच्छेद सिरिजिणहंसमुणीसर(मुणिइसर) रजेसिरिधवलचंदसीसेण गजसारेणअप्पहियाएसा विन्नतिलिहिया||४४|| शब्दार्थ सिरि-श्री रजे-राज्यमें-शासन में जिणहंस-जिनहंस नाम के सिरि-श्री मुणीसर-(मुनि का ईश्वर) आचार्य का | धवलचंद-धवलचंद मुनि का सीसेण-शिष्य विन्नति-विज्ञप्ति, विनंति गजसारेण-गजसार मुनि द्वारा अप्पहिया-आत्महितकारी लिहिया-लिखी है . या अपना हित करनेवाली एसा-यह गाथार्थ . आत्महितकारी ग्रह विज्ञप्ति श्री जिनहंससूरीश्वरजी के राज्य में श्री धवलचंदमुनि के शिष्य श्री गजसार मुनि ने लिखी है। विषेशार्थ ___ इस प्रकरण के कर्ता श्री गजसार मुनि श्री जिन हंससूरी नामक आचार्य के राज्य में-शासन में हुए थे। श्री जिनहंससूरी खतरगच्छ के आचार्य थे, तथा श्री गजसार मुनि श्री धवलचंद्रमुनि के शिष्य थे। संविग्नपंडित श्री अभयोदयणि के पास उनका लालन पालन हुआ था (इसलिए उनके पास दीर्घकाल तक रहे थे) उन्हीं श्री गजसार मुनि ने ही इस दंडक प्रकरण के स्वरूप में श्री 24 जिनेन्द्रों की स्तुति विनंति की है और वह विनंति अवश्य आत्म कल्याण करनेवाली है, क्योंकि ग्रंथरचना में पर-अन्य जीवों का कल्याण भजनीय-अनियत है और स्व-कल्याण तो अवश्य है, इसलिए कहा है कि : | दंडक प्रकरण सार्थ (१२१)प्रशस्ति-गुरु परंपरा-संबंध