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________________ शब्दार्थ तुम्ह-आपका दंडतिय विरह-तीन दंड से भत्तस्स-भक्त को विरक्त हुए, निवृत्त हुए जीवों संपइ-अब, वर्तमान काल में को या तीन दंड की विरति दंडगपय-दंडक पदों में निवृत्ति से। भमण-भ्रमण करने से सुलह-सुलभ, सहज रूप से भग्ग हिययस्स-भग्न हृदयवाला लहु-शीघ्र, जल्दी से ___या खेदित हुआ हृदयवाला मम-मुझे दिंतु-दो, प्रदान करो मुक्खपयं-मोक्षपद गाथार्थ अबदंडकपदों में भ्रमण करने से खेदित (हताश) हृदयवाले आपके भक्त को तीन दंड की विरति-निवृत्ति से सहज रूप में प्राप्त होनेवाला शीघ्र मोक्षपद प्रदान करे। विशेषार्थ ___गाथा में कहा है कि 'हे श्री 24 जिनेश्वरों' अब इन 24 दंडको में भ्रमण करने से अति खेदित हुआ हृदयवाला इस आपके भक्त को तीन दंड की याने मनदंड, वचनदंड और कायदंड की निवृत्ति से (त्याग से सुलभ ऐसा मोक्षपद मुझे शीघ्र प्राप्त हो। - ग्रंथकर्ता की मोक्षपद की इस प्रार्थना में (1) दंडक भ्रमण से उत्पन्न होता हुआ खेद (2) तीन दंड का त्याग (3) (तीन दंड के त्याग से) मोक्षपद की ही प्राप्ति, ये तीन मुख्य विषय है इसके बारे में संक्षेप से जानकारी इस प्रकार है : 1) दंडक भ्रमण से खेद :- तिर्यंचगति के 9 दंडक में तथा नरक का 1 दंडक में जो दुःख है वह सबको मालूम है। उसी तरह मनुष्य के 1 दंडक में सुख दंडक प्रकरण सार्थ (119) संसार से मोक्ष के लिए प्रार्थना
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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