________________ भू-पृथ्वीकाय . अहिय अहिय-अधिक अधिक इमे-ये(२४ दंडक पद) सव्वेवि-सभी मए-मैने वणस्सई-वनस्पतिकाय कमेण-अनुक्रम से हुंति-होते है भावा-भावो अणंतसो-अनंतबार गाथार्थ सबसे अल्प पर्याप्त मनुष्य उनसे (पर्या.) बादर अग्निकाय, 0 वैमानिक देव 0 भवनपति० नरक, 0 व्यंतरदेव, 0 ज्योतिषि देव, 0 चउरिन्द्रिय, पंचे. तिर्यंच, द्विन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, 0 पृथ्वीकाय, 0 अप्काय, * वायुकाय, उससे अनंतगुणा वनस्पतिकाय क्रमानुसार ये सभी अधिक अधिक है। हे जिनेश्वर ! ये सभी भाव मैने अनंतबार प्राप्त कियें है (41-42) विशेषार्थ इस तरह 24 दंडक का अल्पबहुत्व कहकर अब ग्रंथकर्ता इस दंडक प्रकरण की रचना का प्रयोजन के रूप से दुःख प्रकट करते हे कि 'हे जिनेश्वर भगवंतो ! मैने इन सभी दंडक में अनंतबार भ्रमण किया है।' . यहां पर समझने की बात यह है कि आत्मधर्म सन्मुख नहीं हुआ हो ऐसे जीव इन 24 दंडकों में अनंतबार भ्रमण किया है करते है, और अनंतकाल भ्रमण करेंगे। प्रायः करके कोई भी जीव भेद ऐसा नहीं है कि जिसमें जीव ने अनंतबार भ्रमण न किया हो कहा है कि फूटनोट : ) इस निशानी के स्थान पर अधिक याने पूर्व संख्या से असंख्यात गुणा जीव जानना। 2) इस निशानी के स्थान पर अधिक याने पूर्व संख्या से विशेषाधिक जीव जानना, विशेषाधिक का अर्थ संपूर्ण दुगुणा नहीं। / दंडक प्रकरण सार्थ अल्प बहुत्व 11