________________ संस्कृत अनुवाद वेदत्रिकंतिर्यनारयोः, स्त्रीपुरुषश्च चतुर्विधसुरेषु। स्थिरविकल नारकेषु, नपुंसकवेदोभवत्येकः॥४०॥ . अन्वय सहित पदच्छेद तिरिनरेसुतियवेय, चउविहसुरेसुइत्थीयपुरिसो थिरविगल नारएसु, एगोनपुंसवेओहवइ||४|| शब्दार्थ इत्थी-स्त्री वेद / चउविह-चार प्रकार के (13 दंडक के) पुरिसो-पुरुष वेद / नपुंसवेओ-नपुंसक वेद य-और हवइ-है। गाथार्थ तिर्यंच-और मनुष्य में तीन वेद है, चार प्रकार के देवों में स्त्री और पुरष वेद है। स्थावर, विकलेन्द्रिय और नरक में सिर्फ एक नपुंसक वेद है। विशेषार्थ युगलिक तिर्यंच और युगलिक मनुष्य में नपुंसक वेद नहीं है एकेन्द्रिय को भी १२वीं गाथा में मैथुनादि संज्ञा कहीं है इसलिए अस्पष्ट नपुंसकवेद है और सनतकुमार देवलोक से सर्वार्थसिद्ध विमान तक देवो में एक पुरुष वेद ही है। // 24 दंडक में 3 वेद॥ 1 ग. तिर्यंच को (3 वेद) 13 देव मे 2 (स्त्री, पुरुष) 1 ग. मनुष्य का (3 वेद) ९शेष दंडक मे 1 (नपु.) ॥सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय तथा सम्मू. मनुष्य में 24 द्वारो॥ 1) शरीर 3- सबको औदारिक-तेजस-कार्मण ये तीन शरीर / 2) अवगाहना- दोनों को जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग है | दंडक प्रकरण मार्थ (112) वेद द्वार - -