________________ 276 से | मनुष्य के 303 भेद में आगति गति | 15 पर्याप्त कर्मभूमि के 15 अपर्या. कर्मभूमि के | 179 में 5 पर्याप्त हिमवंत के | 126 में 5 पर्याप्त हिरण्य. के 20 से 126 में 5 पर्याप्त हरिवर्ष के | 128 में 5 पर्याप्त रम्यक् के 20 से | 128 में 5 पर्याप्त उत्तरकुरु के 20 से 128 में 5 पर्याप्त देवकुरु के | 128 में 56 पर्याप्त अन्तीप के 25 से 102 में 86 अपर्या. सभी युगलिक (30+56) | ०(अथवा इस क्षेत्र मुताबिक)२० 101 सम्मू. मनुष्य युगलिक चतुष्पद 171 से 179 में उस उस क्षेत्र के | युगलिक खेचर (अन्तर्वीपवत्) | युग. मनुज वत् 25 से 102 में ... यहां युगलिक चतुष्पद को आयु. 30 अकर्मभूमि और 56 अंतर्वीप के समान है और युगलिक खेचर का आयु 56 अंतर्वीप के समान ही है इसलिए उस उस क्षेत्र में युगलिक मनुष्यों के समान युगलिक चतुष्पद और खेचर की आगतिगति कहना / जलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प तो युगलिक होते नहीं है। 24 वेदद्वार गाथा - वेयतिय तिरिनरेसु.इत्थीपुरिसोयचउविहसुरेसु। थिरविगलनारएसुनपुंसवेओहवइएगो॥४oll फूटनोट : (१-२)अपर्याप्त युगलिक मनुष्य मृत्यु पाते नहीं है इसलिए गति के स्थान में शून्य है। और युगलि मनुष्य को लब्धि अपर्याप्तपणा होता नहीं इसलिए आगति भी नही है, यदि करण अपर्याप्तत्व माने तो आगति में उस उस क्षेत्र के पर्या. युगलिक मनुष्य के समान जानना। दंडक प्रकरण सार्थ (111) वेद द्वार