________________ सयल-सकल सर्व, सभी जंति-जाते है, उत्पन्न होते है। जीवठाणेसु-जीवस्थानो में, तेउ-तेजस्काय, जीवभेदो में, दंडकों में। नो-नही वाउहिं-वायुकाय में से जंति-जाते है, उत्पन्न होते है गाथार्थ गर्भज तिर्यंचों का गमनागमन सभी जीव स्थानों में होता है। मनुष्य सभी में जाते है, अग्निकाय और वायुकाय, मनुष्य में आते नहीं है। विशेषार्थ 24 दंडको की गति-आगति कोष्टकों में बंताई है। विस्तारसे गति-आगति द्वार गति-आगति द्वार के अंकों की समझ 5 पर्याप्त गर्भज (जलचर, स्थलचर, खेचर, उर: परिसर्प, और भुजपरिसर्प) तिर्यंच 15 पर्याप्त गर्भज कर्मभूमि के मनुष्य 16 15 कर्म. के मनुष्य, 1 पर्याप्त गर्भज जलचर 17 15 कर्म. के मनुष्य, 1 पर्याप्त गं.जलचर, 1 पर्या.ग. उरपरिसर्प 18 15 कर्म. के मनुष्य, 1 पर्या.ग.जल. 1 पर्या ग.उर., 1 पर्या.ग. स्थलचर 19 15 कर्म. के मनुष्य, 4 जल स्थल खे.उर. ये 4 ग. पर्याप्त 20 15 कर्म. के मनुष्य, 5 पर्या.ग. (जलचरादि) तिर्यंच पंचेन्द्रिय 23 15 कर्म. के मनुष्य, 5 पर्यां.ग. तिर्यंच, 3 पृथ्वी.,अप., प्र. वन. ये 3 - बादर पर्याप्त 25 15 कर्म. के मनुष्य, 5 पर्यां.ग. तिर्यंच, 5 पर्या.सम्मू.तिर्यंच, पंचेन्द्रिय 40 15 कर्म. के मनुष्य, 5 पर्या.ग. तिर्यंच, 20 पर्याप्त अकर्मभूमि (5 हिमवंत 5 हिरण्यवंत रहित) के गर्भज मनुष्य। दंडक प्रकरण सार्थ (107) विस्तार से गति- आगति द्वार