________________ उत्तर :- इस तरह विचार करे तोपर्वतों और पृथ्वीओंअनेक करोडो सालोसे है। नदीया और समुद्र भी अनेक करोडो साल से है। तो पृथ्वीकाय और अप्काय का आयुष्य 22000 वर्ष तथा 7000 वर्ष का किस तरह गिना जाय ? इसलिए यहां पर उन कायों का पिंड का आयुष्य नहीं कहा है। किन्तु उन कायो की पिंड में रहे हुए पृथ्वीकायादि एक-एक जीवों का आयुष्य कहा गया है। इसी कारण से द्वारिका की अग्नि छ महिने तक रही। वह अनेक बार अनेक अग्नि के जीवों का जन्म-मरण के प्रवाह रूप से रही थी। इसलिए अग्नि के एक जीव का आयुष्य भी सर्वज्ञ भगवंत ने तीन दिन का देखा है ऐसा जानना / मनुष्य और तिर्यंचो का आयुष्य 3 पल्योपम का कहा है, वह देवकुरु, उत्तरकुरु के उत्कृष्ट आयुष्यवाले युगलिक मनुष्य तथा युगलिक तिर्यंचो का आयुष्य है। वैमानिक देवों का तथा नरक का आयुष्य 33 सागरोपम का है वह पांच अनुत्तर विमान के देव तथा सातवीं नरक के जीवों का उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से है। व्यंतरोका उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपम है। लेकिन देवीओं का उत्कृष्ट आयु आधा पल्योपम है। ज्योतिषी में 1 लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम आयुष्य है वह चन्द्र विमानवासी पुरुषदेवों का है तथा चन्द्र का अपना (इन्द्रका) है ऐसा जानना। गाथा असुराणअहियअयर,देसूणदुपल्लयंनव निकाए। बारस-वासुणपणदिण-छम्मासुकिट्ठविगलाऊ||२८|| संस्कृत-अनुवाद असुराणामधिकमतरं, देशोनद्विपल्यंनवनिकायेषु द्वादशवर्षेकोनपञ्चाशद, दिनषष्ठमासाउत्कृष्टंविकलायुः॥२८॥ अन्वय सहित पदच्छेद असुराणअयरंअहिय,नवनिकाएदेस्ण दुपल्लयं विगलउक्किद्वआउ-बारसवास,ऊणपणदिण,छमासा||२८|| | दंडक प्रकरण सार्थ (91) विरहदार