________________ संस्कृत-अनुवाद त्रिदिनोऽग्निस्त्रिपल्यायुष्कौ नरतिर्यचौसरनैरयिको सागरत्रयस्त्रिंशत्को व्यन्तरस्यपल्यं, ज्योतिषोवर्षलक्षाधिकंपल्यम्॥२७॥ अन्वय सहित पदच्छेद .. अग्गिति दिण, नरतिरितिपल्ल आऊ,सुर निरय तित्तीसासागर, वंतरपल्लं, जोइसलक्खवरिसअहियंपलियं॥२७॥ शब्दार्थ ति दिण-तीन दिन पल्ल-एक पल्योपम अग्गि-अग्निकाय का वरिस-वर्ष ति पल्ल-तीन पल्योपम लक्ख-एक लाख आऊ-आयुष्य अहियं-अधिक सागर-सागरोपम पलियं-पल्योपम तित्तीसा-तेत्तीस गाथार्थ अग्निकाय का तीन दिन, गर्भज-मनुष्य और तिर्यंच का तीन पल्योपम देव और नरक का तेत्तीस सागरोपम व्यंतर एक पल्योपम, और ज्योतिषी देवों का एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम का आयुष्य है। विशेषार्थ निराबाध स्थान मेंरहे हुए बादर पर्याप्त अनिकाय का आयुष्य तीन दिन का है। प्रश्न :- द्वारिका नगरी का अग्निदाह छ महिने तक रहा ऐसा सुना जाता है। इस तरह अग्नि का छ महिने जितना लंबा आयु क्यों नहीं हो सकता ? | दंडक प्रकरण सार्थ (90) . विरहद्वार