________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं राजर्षि प्रसन्नचन्द्र मगधपुरी (राजगृह) में आए। वहां वे आतापना ले रहे थे। महाराज श्रेणिक ने उनको सादर वंदना की। यह उनके निष्क्रमण की कहानी है। भगवान् महावीर श्रेणिक के समक्ष प्रसन्नचन्द्र राजर्षि के अशुभशुभ ध्यान के कारण नरक-देवगति की उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन कर रहे थे, इतने में ही राजर्षि जहां आतापना में स्थित थे, वहां देवों का उपपात होने लगा। श्रेणिक ने भगवान् से पूछा-'भगवन्! यह देव-संपात क्यों हो रहा है?' भगवान् बोले-'अनगार प्रसन्नचन्द्र को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है इसलिए देव आ रहे हैं।' फिर श्रेणिक ने पूछा-'भगवन् ! केवलज्ञान कबकिससे व्युच्छिन्न होगा?' उस समय ब्रह्मलोक का देवेन्द्र सामानिक विद्युन्माली देव अपने तेज से दसों दिशाओं में उद्योत करता हुआ वंदना करने आया। भगवान् ने श्रेणिक को दिखाया कि यही अंतिम केवली होगा। 15. सुबुद्धि मंत्री, - क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर में चन्द्रक नामक राजा राज्य करता था। उसके मंत्री का नाम मतिसार था, जिसके दो पुत्र थे। मंत्री ने दोनों पुत्रों को अध्ययन हेतु भेजा। अपने नाम के अनुरूप पहला सुबुद्धि कलावान् तथा सभी विद्याओं में पारंगत बन गया लेकिन दूसरा अज्ञानी, विद्याहीन और मूर्ख बना रहा। गुणों के अनुरूप लोग पहले को सुबुद्धि तथा दूसरे को दुर्बुद्धि कहने लगे। .. उस नगरी में धन नामक सेठ रहता था, जिसके चार पुत्र थे-१. जावड़, 2. भावड़, 3. बाहड़, 4. सावड़। अपने अंतिम समय को जानकर सेठ ने अपने पुत्रों से कहा-'मेरे मरने के बाद तुम चारों भाई प्रेम से रहना।' मैंने तुम चारों भाइयों के लिए घर के चारों कोने में एक-एक चरु गाढ़ दिए . हैं, वे मेरी मृत्यु के बाद निकालना। .. सेठ के दिवंगत होने पर पुत्रों ने चारों कोनों से चरु निकाले। उनमें 1. आगम 113, आवनि. 545, आवचू. 1 पृ. 455-60, आवमटी. प. 457-60 / .