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________________ 70 आगम अद्भुत्तरी प्रारंभ कर दिया। रथिक ने उस पर गाढ़ प्रहार किया। चोर उसकी युद्धशिक्षा से परितुष्ट होकर बोला-'हे वीर! मेरे पास विपुल धन है। तुम उसे ले लो।' तब तीनों ने रथ को धन से भर दिया। आगे चलते हुए वे पोतन नगर में पहुंचे। रथिक ने वल्कलचीरी को कुछ धन समर्पित कर उसे उदक की गवेषणा करने के लिए विसर्जित कर दिया। वह घूमता हुआ एक गणिका के घर में प्रविष्ट हुआ। गणिका बोली-'तात! मैं तुम्हारा अभिवादन करती हूं।' वल्कलचीरी बोला-'इतना मूल्य लेकर मुझे उदक दो।' गणिका बोली"पहले मैं तुम्हें यहां निवास देती हूं।' उसने नापित को बुलाया। वल्कलचीरी नख-परिकर्म करवाना नहीं चाहता था। उसका ज्योंहि स्नान कराने का उपक्रम किया गया, वह बोला-'मेरा ऋषिवेश मत उतारो।' तब गणिका ने कहा-'जो यहां उदकार्थी आते हैं, उनके साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है।' फिर उसको स्नान करवाया और विशेष वस्त्र पहनाए गए। अनेक आभूषणों से उसको अलंकृत किया और गणिका की कन्या के साथ उसका पाणिग्रहण कर दिया। तब वे गणिकाएं वधूवर संबंधी गीत गाने बैठ गईं। इधर कुमार वल्कलचीरी को लुब्ध करने के लिए ऋषिवेश में भेजी गई गणिकाएं भी वहां आ पहुंचीं। उन्होंने आकर राजा प्रसन्नचन्द्र से कहा-'कुमार अटवी में चला गया। हम ऋषि के भय से उसे बुला नहीं सकी।' यह सुनकर राजा विषण्ण हो गया। अहो! अकार्य हो गया। न कुमार पिता के पास रह सका और न ही यहां आया। पता नहीं, उसके साथ क्या हुआ होगा? राजा चिंतातुर हो गया। इतने में ही उसके कानों में मृदंग की ध्वनि पड़ी। उसका मन दुःखी हो गया। उसने सोचा-'मैं दुःखी हो रहा हूं। ऐसी स्थिति में कौन दूसरा व्यक्ति इस प्रकार नृत्य-गीत से क्रीड़ा कर रहा है?' गणिका को यह बात एक व्यक्ति ने कही। वह आई और प्रसन्नचन्द्र महाराज के चरणों में गिरकर बोली-'देव! एक नैमित्तिक ने मुझे यह बताया था कि अमुक दिन, अमुक वेला में जो तरुण तापसवेश में तुम्हारे घर आए, उसे उसी समय अपनी दारिका दे देना, उसके साथ दारिका का
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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