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________________ आगम अङ्गुत्तरी उसकी चेष्टाओं से समझ गया कि यह परिव्राजक के वेश में ठग है। मार्ग में परिव्राजक ने सबको विषमिश्रित खीर खिला दी, जिससे सभी कालकवलित हो गए। सावधानी के कारण अगड़दत्त और श्यामदत्ता बच गए। अगड़दत्त के साथ संघर्ष करने में परिव्राजक भी मृत्यु को प्राप्त हो गया। मार्गगत अनेक कठिनाइयों को पार करके अगड़दत्त उज्जयिनी नगरी पहुंचा। वह राजा की सेवा करते हुए सुखपूर्वक समय व्यतीत करने लगा। ___ एक बार राजाज्ञा से उद्यान में उत्सव मनाया गया। उस उत्सव में अगड़दत्त भी अपनी पत्नी के साथ सम्मिलित हुआ। वहां श्यामदत्ता को सर्प ने डस लिया, वह मूर्च्छित हो गई। वह पत्नी के शव के पास बैठकर आंसू बहाता रहा। उसी समय दो विद्याधर आकाशमार्ग से गुजरे। उन्हें अगड़दत्त पर करुणा आई। उन्होंने विद्याबल से श्यामदत्ता को निर्विष कर दिया। आधी से अधिक रात व्यतीत होने के कारण अगड़दत्त ने शेष रात्रि उद्यान में बने देवकुल में व्यतीत करने का निर्णय किया। शीत से बचने के लिए वह श्मशान में अंगारे लेने चला गया। जब अगड़दत्त वापस लौटा तो उसे देवकुल में प्रकाश दिखाई दिया। उसने पत्नी से इस संदर्भ में पूछा तो उसने कहा कि आपके हाथ की अग्नि की परछाई होगी। अगड़दत्त ने उस पर विश्वास कर लिया और प्रातः दोनों अपने घर लौट गए। एक दिन अगड़दत्त के यहां दो मुनि भिक्षार्थ आए। उसने उन्हें आहार का दान दिया। पुनः दो मुनि आए। कुछ समय बाद तीसरा युगल आया। अगड़दत्त उद्यान में पहुंचा और पूछा-'आप छहों समान रूप वाले हैं, इतनी छोटी उम्र में आपको वैराग्य कैसे हुआ?' मुनियों ने कहा-'विन्ध्याचल के पास अमृतसुंदरा नामक एक चोरपल्ली है, वहां अर्जुन नामक चोर सेनापति था। एक युवक अपनी पत्नी
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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