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________________ परिशिष्ट 2 : कथाएं धम्मिल्ल के घर में वैभव समाप्त हो गया है अत: इसके साथ हमारा सम्बन्ध उचित नहीं है। पुत्री ने कहा-'मुझे धन से कोई मतलब नहीं है। मैं उसके गुणों से प्रभावित हूं। यदि मुझे जीवित देखना चाहती हो तो भविष्य में आप धम्मिल्ल के सम्बन्ध में कुछ मत कहना। उसके वियोग में मेरा जीना असंभव है। गणिका ने अपनी पुत्री को विविध उपायों से समझाना चाहा लेकिन वह उसके विचारों को नहीं बदल सकी। बसन्तसेना ने अपनी मां से कहा-'आप कृतघ्न हैं। जब तक उसके यहां से धन मिल रहा था, तब तक ठीक था। अब वैभव क्षीण होने पर वह आपको अच्छा नहीं लग रहा है।" बसन्तसेना ने सोचा कि मेरी पुत्री इसमें अत्यन्त आसक्त है अतः और कोई उपाय करना चाहिए। एक दिन गणिका ने बसन्ततिलका की सभी सखियों एवं परिजनों को बुलाया। धम्मिल्ल भी सब अलंकारों से विभूषित होकर वहां उपस्थित हुआ। बसन्ततिलका एवं उसकी सखियों के साथ धम्मिल्ल ने अत्यधिक शराब पी ली। शराब की अधिकता से वह मूर्च्छित हो गया। बसन्तसेना ने उसको एक वस्त्र में बांधकर गांव से दूर छुड़वा दिया। प्रात:काल की शीतल हवा से उसमें चेतना आई / उसका मन ग्लानि से भर गया। वह वहां से उठा और लोगों से पूछते-पूछते अपने घर पहुंच गया। वहां उसने द्वारपाल से पूछा-'यह किसका घर है?' द्वारपाल ने पूछा-'आपको किस घर से प्रयोजन है?' उसने कहा-'धम्मिल्ल के घर से।' द्वारपाल बोला-'धम्मिल्ल के मां और पिता शोक से मर गए। पत्नी . पीहर चली गई और धम्मिल्ल गणिका के घर में है। उसका सारा वैभव क्षीण हो गया है।' यह सुनकर धम्मिल्ल वजाहत सा पृथ्वीतल पर गिर गया। कुछ देर बाद उठकर उसने सोचा-'माता-पिता के वियोग होने पर तथा वैभव के क्षीण होने पर अब जीने का क्या लाभ? वह वहां से उठकर नगर के बाहर चला गया। प्राणत्याग हेतु उसने अनेक उपाय किए लेकिन वह सफल नहीं हो सका। __ इधर दूसरे दिन बसन्ततिलका जब उठी तो उसने धम्मिल्ल को
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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