________________ आगम अद्दुत्तरी भीमकुमार ने म्यान से तलवार निकाली और बोला-"धर्म के प्रभाव से तुम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।" कापालिक ने आंखें लाल करके कहा"देखता हूं तुमको इस श्मशान से कौन बचा सकता है? मैं तुम्हारा शिर काढूंगा। तुमको अभी तक मेरी शक्ति का ज्ञान नहीं है।" कापालिक ने तलवार से घात किया, भीमकुमार फुर्ती से कापालिक के कंधे पर चढ़ गया। कापालिक ने उसके पैर पकड़कर उसे आकाश में उछाल दिया। उसी समय कमला यक्षिणी ने उसे बचा लिया और उसे विन्ध्याचल पर्वत पर ले गई। यक्षिणी ने भीमकुमार से कहा-"मैंने तुमको बचाया है अतः मेरी वासना की पूर्ति करो।" भीमकुमार ने कहा-"आप मेरी माता के समान हैं, मैं स्वप्न में भी यह बात नहीं सोच सकता।" देवी उसकी दृढ़ता देखकर प्रसन्न हो गई और वरदान मांगने को कहा। भीमकुमार बोला"मुझे केवल आपका आशीर्वाद चाहिए।" देवी ने उसे सदैव अजेय रहने . का आशीर्वाद दिया। विन्ध्याचल पर्वत पर भीमकुमार को धार्मिक स्वाध्याय के शब्द सुनाई दिए। खोजते हुए वह स्वाध्यायरत मुनि के पास गया और उनका उपदेश सुनने लगा। उसी समय भीमकुमार के सामने कापालिक का बायां हाथ आया और भीमकुमार को खींचने लगा। भीमकुमार उस हाथ पर बैठ गया। वह हाथ उसे कालिका माता के मंदिर में ले गया। माता की मूर्ति के गले में मस्तक-मुण्डों की माला थी। कापालिक ने दूसरे हाथ से मतिसागर को पकड़ रखा था। कापालिक ने मतिसागर को कहा-“मैं तुम्हारी बलि दूंगा।" मुझे जिनेश्वर भगवान् की शरण है, यह कहते हुए मतिसागर ध्यानस्थ हो गया। भीमकुमार मतिसागर की आवाज सुनकर उसके पास आया। वह मतिसागर को बचाने के लिए उसके पास गया। भीमकुमार ने मतिसागर से पूछा"तुम यहां कैसे आए?" उसने उत्तर दिया-"तुमको घर पर नहीं देखकर तुम्हारी पत्नी व्यथित और राजा-रानी बेचैन हो गए। कृष्णा चतुर्दशी को