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________________ पाठ-सम्पादन एवं अनुवाद 112. धम्मिल्ल-दामणइया, सत्तेणं अगडदत्तनरवतिणो। समयाए दमदंतो', मुणिवति-मेयारिओ जाण॥ धम्मिल्ल, दामनक और अगडदत्त राजा ने सत्य (सत्त्व) से तथा दमदंत, मुनिपति' और मेतार्य ने समता से बोधि को प्राप्त किया। 113. धन्नो वक्कलचीरी, कुलिंगमझे विलहति सम्मत्तं। धन्नो सुबुद्धिमंती, धम्मायरियाउ पडिबुद्धो॥ वल्कलचीरी धन्य था, जिसने कुलिंगियों के बीच में भी सम्यक्त्व को प्राप्त कर लिया तथा सुबुद्धि मंत्री भी धन्य था, जो धर्माचार्य से प्रतिबुद्ध हो गया। 114. विहि-अविहिं च न याणे, बिंबंदटुं जिणिंददेवाणं। सिद्धाणं संथवणं, कायव्वं निउणबुद्धीए॥ व्यक्ति भले विधि और अविधि को नहीं जाने पर उसे जिनेश्वर देव का बिम्ब देखकर निपुणबुद्धि से सिद्धों का स्तवन करना चाहिए। . 115. आगमअद्भुत्तरिया, रइया सिरिअभयदेवसूरीहिं३ / पढिता हरेति पावं, गुणिता अप्पेति बोधिफलं॥ ___ - यह आगम अष्टोत्तरिका श्रीअभयदेवसूरि द्वारा रचित है। इसको पढ़ने से यह पाप का हरण करती है तथा इसका चिंतन करने से बोधिफल प्रदान करती है। 1. “णईया (म)। 11. दिटुं (द, ब, हे)। 2. दवदंतो (अ, द, म, हे)। 12. तेरापंथ को मूर्तिपूजा मान्य नहीं है। 3-10. कथा के विस्तार हेतु देखें परि. 2, 13. सूरिहिं (द)। कथा सं. 8-15 /
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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