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________________ 23 पाठ-सम्पादन एवं अनुवाद * 65. इक्कडयसुण्णसहितो, दसगुणितो लहति कोडिमाहप्पं / तव्विरहे किं सुण्णा, लहेति संखाइ सह मिल्लं॥ शून्य से युक्त एक का अंक दस गुणित होकर करोड़ों के माहात्म्य को प्राप्त कर लेता है। एक के बिना केवल शून्य क्या शत, सहस्र आदि संख्या को प्राप्त कर सकता है? 66. इक्कं जिणिंदआणा', सुण्णोवमियाइ आणरहिताई। वत-दाण-सील-नाणं, न लहति इक्कं पि तंबडयं॥ जिनेन्द्र की आज्ञा एक अंक के समान है। आज्ञा रहितता केवल शून्य के समान है। आज्ञा के बिना व्रत, दान, शील और ज्ञान एक पैसे का मूल्य भी नहीं पाते हैं। 67. जो कोइ आणरहितो, पूयापमुहं करेति तिक्कालं। तस्स वि सव्वमसुद्धं, आणाबज्झं अणुट्ठाणं // आज्ञा से रहित कोई पुरुष यदि तीनों काल में पूजा-भक्ति आदि अनुष्ठान करता है तो उसका अनुष्ठान आज्ञा बाह्य होने के कारण अशुद्ध होता है। 68. जह कोइ मिस्सदिट्ठी, उभओ कालं करेति सज्झायं। ___नालेरदीवमणुया', अन्ने 'रागो न दोसत्तं॥ 69. ते डमरूमणितुल्ला", घंटाजालुव्व ककचकिंतणया। कुक्करचम्मरसिल्लो', सातं न लहेति घुसिणस्स॥ - जैसे नारिकेरद्वीप का निवासी अन्न के प्रति राग-द्वेष नहीं करता, जैसे डमरुक मणि दोनों ओर से बजती है, जैसे घंटा-जाल और काटती हुई करवत दोनों ओर जाती हैं, जैसे कुत्ते के चर्म में आसक्त व्यक्ति केशर का स्वाद नहीं ले पाता, वैसे ही मिश्रदृष्टि 1. जिणंद (म, ब)। 8. घंटालालुव्व (द, ब)। 2. सुन्नोवमाइ (ब, म)। 9. कूकर (अ, द, ब, म, हे)। 3. कोई (द), को वि (हे)। 10. नालिकेर द्वीप के निवासी नारियल 4. वणु' (अ, द, ब, हे)। अथवा फल के आधार पर जीवन 5. नालिअर' (ला)। व्यतीत करते हैं। वहां धान्य उत्पन्न 6. राउन्न (म)। नहीं होता अतः वे धान्य का प्रयोग 7. मणीतु (अ, द, ब, म)। नहीं करते।
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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