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________________ आगम अद्भुत्तरी 35. जेसिं न आणबुद्धी, विजा-विण्णाण-चउरिमा सुद्धी। तो 'गो-मिग २-रुक्ख-पत्थर, खर-तिण-सुणगादि सारिच्छं॥ जिन मनुष्यों के पास जिन-आज्ञा विषयक बुद्धि, विद्या, विज्ञान, चतुराई और शोधि नहीं होती, वे व्यक्ति गाय, मृग, वृक्ष, पत्थर, गधा, तृण और कुत्ते के समान होते हैं। . 36. भक्खे सुक्कतणाई, दुद्धं अप्पेमि अमियसारिच्छं। छगणाउ भूमिसुद्धी, लिंपण-पयणादिकज्जेसु॥ (कवि की इस उपमा को सुनकर गाय इसका प्रतिवाद करते हुए कहती है-) मैं सूखे तृण खाकर अमृत तुल्य दूध प्रदान करती हूं। मेरा गोबर भूमि की शुद्धि, भूमि की लिपाई और भोजन पकाने आदि कार्य में सहयोगी होता है। 37. पासवणं पावहरं, बालाणं दिट्ठिरोगहरणं' च। मह उज्झाओ दव्वा, पित्तविकाराउ रोयणयं॥ मेरा प्रस्रवण पाप का हरण करने वाला', बालकों के दृष्टि रोग को दूर करने वाला है। मेरे द्वारा त्यक्त दूध आदि से उत्पन्न द्रव्य पित्त-विकार को दूर करने वाले पाचक और पुष्टिकारक होते 38. आहेडप्पमुहाई, लहंति तित्तिं मुए वि मंसाउ। चम्माउ पादरक्खा, जलभायणयाइ० जायंति॥ ___ मेरे मरने पर शिकारी आदि लोग मांस से तृप्ति का अनुभव करते हैं। मेरे चर्म से निर्मित चप्पल, जूते आदि से पैरों की रक्षा होती है तथा चर्म से दृति आदि जल-भाजन बनाए जाते हैं। 1. बुद्धी (अ, द, ब)। 7. गाय का प्रस्रवण पाप का हरण 2. गोमि (द, अ)। करता है-यह वैदिक या लौकिक 3. सुण्हाइं (अ, ब, म, हे)। मान्यता है। 4. अमय' (अ, द)। 8. अष्टांग हृदय में भी उल्लेख मिलता 5. पुट्ठि (ब, म, हे), 'पुट्ठि' पाठ रखने है कि गोमूत्र से आंखें गरुड़ के से 'बालकों की पुष्टि करने वाला समान दूर तक देखने वाली बन जाती तथा रोग को दूर करने वाला है', यह हैं। (अष्टांग उत्तरस्थान 13/33 पृ. 464) अर्थ होगा। 9. आहोड' (अ, हे), "हाई (अ, द)। 6. वुझाओ (म)। 10. “यणाइं (द, म, ब), “यणाओ (हे)।
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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