________________ आईए नमोक्कारो जइ पच्छाऽऽवासयं तओ पुव्वं / तस्स भणिएऽणुओगे जुत्तो आवसयस्स तओ॥८॥ [ संस्कृतच्छाया:- आदौ नमस्कारो यदि पश्चादावश्यकं ततः पूर्वम्। तस्य भणितेऽनुयोगे युक्त आवश्यकस्य ततः॥] यदीत्यभ्युपगमे, यद्यादौ नमस्कारो दीयते ततः पश्चात् सामायिकाद्यावश्यकम्, ततस्तर्खेतदनेन न्यायेनाऽऽपतितं यदुत पूर्व प्रथमं तस्य नमस्कारस्य भणिते कृतेऽनुयोगे व्याख्याने ततो युक्तः कर्तुमावश्यकस्याऽनुयोगः, व्याख्येयाऽनुरोधेनैव हि व्याख्यानं प्रवर्तते, व्याख्येयस्य चावश्यकस्यादौ नमस्कारो देयत्वेन भवद्भिरभ्युपगम्यते, अतस्तस्यानुयोगे कृते आवश्यकस्याऽसौ कर्तुमुचितः, तत आद्यगाथायां नमोक्काराणुओगपुव्वयं आवस्सयाणुओगं वोच्छं' इति वक्तुं युक्तमिति भावः // इति गाथार्थः॥८॥ अत्रोत्तरमाह सो सव्वसुअक्खन्धब्भन्तरभूओ जओ तओ तस्स। आवासयाणुओगादिगहणगहिओऽणुओगो वि॥९॥ (8) आईए नमोक्कारो जइ पच्छाSSवासयं, तओ पुव्वं / तस्स भणिएडणुओगे जुत्तो आवस्सयस्स तओ॥ - [(गाथा-अर्थः) यदि पहले नमस्कार, और उसके बाद आवश्यक (का क्रम मान्य होता) है, तो फिर पहले उस (नमस्कार) के अनुयोग (व्याख्यान) के बाद, आवश्यक का अनुयोग उपयुक्त (सिद्ध होता) है।] व्याख्याः- 'यदि' यह पद अभ्युपम (किसी सिद्धान्त की स्वीकृति) का सूचक है। अर्थात् 'पहले नमस्कार का दान और उसके बाद सामायिक आदि आवश्यक का दान (कथन आदि) किया जाता है'- अगर ऐसा (सैद्धान्तिकमत, आपको व हमको, दोनों को मान्य) है, तो इसी न्याय (स्वीकृत सिद्धान्त) के अनुसार, यह स्वतः निष्कर्ष निकलता है कि पूर्व में 'नमस्कार' के कथन और उसके अनुयोग (व्याख्यान) के बाद, अब आवश्यक का अनुयोग करना ही उपयुक्त है। चूंकि व्याख्येय के अनुसार व्याख्यान किया जाता है, और व्याख्येय 'आवश्यक' के पूर्व नमस्कार कर लिया गया है- ऐसा आप स्वीकार करते हैं, इसलिए नमस्कार के अनुयोग कहने के बाद, आवश्यक के अनुयोग का कथन उचित ठहरता है। इसी दृष्टि से प्रथम गाथा में 'आवश्यक अनुयोग का कथन करूंगा' -यह कहना उचित (संगत) सिद्ध होता है -यह तात्पर्य है। इस प्रकार, यह गाथा का अर्थ (पूर्ण) हुआ // 8 // (नमस्कार सर्वश्रुत-अन्तर्गत है) इसी क्रम में आगे उत्तर कह रहे हैं (9) सो सव्वसुअक्खन्धब्भन्तरभूओ जओ तओ तस्स / आवासयाणुओगादिगहणगहिओऽणुओगो वि // a 32 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------