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________________ इनके बाद भाष्यकार विषय-वस्तु का उपोद्घात (भूमिका) प्रस्तुत करते हुए, सूत्रस्पर्शिनी व्याख्या का स्वरूप क्या होता है- इसका निरूपण करते हैं। संक्षेप में नियुक्ति व भाष्य आदि में उक्त नियुक्ति पद्धति से प्रतिपाद्य विषय की विस्तृत भूमिका (पृष्ठभूमि) के साथ, उसके सर्वांगीण स्वरूप का ज्ञान कराया गया है। आवश्यक-नियुक्ति तथा इसके समग्र व्याख्या साहित्य (भाष्य, टीका आदि) की महत्ता इसकी विषयवस्तु की उपयोगिता की दृष्टि से भी है, क्योंकि इसमें प्रासंगिक विवेचन के रूप में कई महत्त्वपूर्ण व उपयोगी विषयों का भी ज्ञान कराया गया है। इसका व्याख्या साहित्य भी अनेकानेक ज्ञानवर्धक व उपयोगी सामग्री से समृद्ध हुआ है। उदाहरणार्थ, जैन परम्परा में मान्य तिरेसठ शलाकामहापुरुषों के जीवन-चरित एवं उनके पारिवारिक विवरण, अर्हदादि पांचों परमेष्ठियों के स्वरूपादि का विचार, ऋषभदेव (प्रथम तीर्थंकर का) चरित, भगवान् महावीर के गणधरों का चरित, सात निन्हव आदि-आदि विवरण उल्लेखनीय हैं जो इन ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। ऋषभदेव के जीवन-चरित के प्रसंग में आहार, शिल्प, लेखन, गणित, लक्षण, मानदंड, व्यवहार, नीति, युद्ध, उपासना, चिकित्सा, अर्थशास्त्र, यज्ञ, उत्सव, मंगल, कौतुक, वस्त्र-परिधान, गंध, माल्य, अलंकार, उपनयन, विवाह आदि-आदि से सम्बन्धित अनेकानेक उपयोगी विवरण इन ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं। इन ग्रन्थों में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक परम्परा से सम्बद्ध विस्तृत विवरण संनिहित हैं। इस दृष्टि से यह नियुक्ति और इसका व्याख्या-साहित्य अधिकाधिक उपयोगी सिद्ध हुए हैं। - नियुक्तिकार व भाष्यकार आदि ने यत्र-तत्र प्रसंगोचित दृष्टांतों व कथानकों का भी प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ- सामायिक की उपलब्धि के विषय में पल्यक (लाट देश में धान्यागार रूप में प्रसिद्ध) आदि दृष्टान्त (द्र. वि. भाष्य, गाथा-1204), आचार्य व शिष्य की योग्यता व अयोग्यता के व्याख्यान में गोणी, चन्दनकन्था आदि, तथा शैलघन आदि अनेक उदाहरण (वि. भाष्य, गाथा-1434-1482) उल्लेखनीय हैं। इसी तरह, अनेकानेक दृष्टान्त व उदाहरण नियुक्ति व इसके व्याख्या साहित्य में देखे जा सकते हैं। सामायिक नियुक्ति की सूत्रस्पर्शी व्याख्या प्रारम्भ करते हुए भाष्यकार ने नमस्कार महामंत्र से सम्बन्धित विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किया है जो अपने आप में विशिष्ट है। चूंकि नमस्कार महामंत्र सामायिक आवश्यक का प्रमुख प्रारम्भिक अंग है, अत: पंच परमेष्ठियों के स्वरूपादि का निरूपण करते हुए नमस्कार पदार्थ का भी ग्यारह विचारबिन्दुओं (द्वारों) से स्पष्टीकरण किया गया है। वे ग्यारह द्वार इस प्रकार हैं- (1) उत्पत्ति, (2) निक्षेप, (3) पद, (4) पदार्थ, (5) प्ररूपणा (6) वस्तु (7) आक्षेप, (8) प्रसिद्धि, (9) क्रम, (10) प्रयोजन, और (11) फल। इन द्वारों के भी कई भेद-प्रभेद हैं जिनका भी विवेचन किया गया है। नमस्कार क्या है, किससे सम्बन्ध रखता है, किस कारण से प्राप्त होता है, कहां रहता है ? कितने समय तक रहता है, कितने प्रकार का है ? इत्यादि प्रश्नों का स्पष्ट समाधान प्रस्तुत करते हुए, नमस्कार–विधि, नमस्कार मंत्र की फलश्रुति (अर्थात् इस से काम-निष्पत्ति, आरोग्यप्राप्ति, इसका पारलौकिक फल) आदि-आदि अनेक उपयोगी व महत्त्वपूर्ण ज्ञानसामग्री इन ग्रन्थों में –विशेषावश्यक भाष्य व इसकी टीकाओं में प्राप्त होती है। ROORBOOR@@RO900CR [47] ROO@ROOCRO ROOR
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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