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________________ शष्कुलिकाया गाथायामनुक्तमप्युपलक्षणत्वाद् विहितमिति परिभावनीयम्। तदेवमवग्रहादीनां नैकादिवैकल्यम्, नाऽप्युत्क्रमातिक्रमौ, इति स्थितम्॥ इति गाथार्थः // 299 // 'डग्गहो इहअवाओ य' इत्यादिगाथायाम् 'आभिनिबोधिकज्ञानस्य चत्वारि भेदवस्तूनि समासतः' इत्युक्तम्, तत् किं व्यासतो बहुभेदमप्याभिनिबोधिकज्ञानं भवति?, इत्याशक्य तद्भेदबहुविधत्वदर्शनात् 'समासेन' इति विशेषणस्य सफलत्वमाह सोइंदियाइभेएण छव्विहा वग्गहादओऽभिहिआ। ते होंति चउव्वीसं चउव्विहं वंजणोग्गहणं / / 300 / अट्ठावीसइभेयं एवं सुयनिस्सियं समासेणं। केइ त्तु वंजमोग्गहवजे च्छोढूणमेयम्मि।।३०१॥ अस्सुयनिस्सियमेवं अट्ठावीसइविहं ति भासंति। जमवग्गहो दुभेओऽवग्गहसामण्णओ गहिओ।।३०२॥ प्रतीति न भी हो तो भी उसका अभाव नहीं मानना चाहिए। सूक्ष्म काल-भेद के कारण किसी का सद्भाव स्पष्ट प्रतीति में नहीं आता, वस्तुतः होते तो अवग्रह आदि क्रम से चारों ही हैं।] शष्कुली (पूड़ी) का दीर्घ विशेषण गाथा में कहा नहीं है, फिर भी उपलक्षण होने से (अर्थात् शुष्क पद दीर्घ का भी उपलक्षण -'सादृश्य के आधार पर वाचक' है, इसलिए व्याख्या में) दिया गया है- यह समझें। इस प्रकार अवग्रह आदि में किसी भी एक की विकलता (अभाव) नहीं होती , और न ही उनमें उत्क्रम या अतिक्रम होता है- यह सिद्ध हुआ। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 299 // (आभिनिबोधिक आदि अनेक भेद) 'अवग्रह ईहाऽपायश्च' इत्यादि (पूर्वोक्त) गाथा (नियुक्ति सं. 2, भाष्य-गाथा सं. 178) में 'आभिनिबोधिक ज्ञान के ये चार भेद संक्षेप में होते हैं' -यह कहा गया था।तो क्या उस आभिनिबोधिक ज्ञान के बहुत से भेद भी होते हैं? इस आशंका (जिज्ञासा) के उत्तर में उसके भेदों या बहुविधता को स्पष्ट करने हेतु (भाष्यकार) 'संक्षेप में इस विशेषण के फल (उसकी सार्थकता) का कथन कर रहे हैं // 300+301+302 // सोइंदियाइभेएण छविहा वग्गहादओऽभिहिआ। ते होंति चउव्वीसं चउव्विहं वंजणोग्गहणं / / अट्ठावीसइभेयं एवं सुयनिस्सियं समासेणं / के इ त्तु वंजमोग्गहवज्जे च्छोटूणमेयम्मि / / अस्सुयनिस्सियमेवं अट्ठावीसइविहं ति भासंति। जमवग्गहो दुभेओऽवग्गहसामण्णओ गहिओ।। ----- विशेषावश्यक भाष्य -- ---- 437
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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