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________________ "किमत्र सप्तच्छदाः, मत्तकरिणो वा?', 'कस्तूरिका, वनगजमदो वा?' इत्यादिपरिग्रहः। रसनेन्द्रियप्रभवस्येहादेः संभृतकरील- - मांसादिवत् समानरसो विषयः। तत्र संभृतानि संस्कृतानि संधानीकृतान्युद्धृतानि यानि वंशजालिसंबन्धीनि करीलानि, तथा मांसम्, अनयोः किलाऽऽस्वादः समानो भवति। ततोऽन्धकारादावन्यतरस्मिन् जिह्वाग्रप्रदत्ते भवत्येवम्- 'किमिदं संभृतवंशकरीलम्, आमिषं वा?' इति, आदिशब्दाद् 'गुडः,खण्डं वा?', 'मृद्वीका, शुष्कराजादनं वा?' इत्यादिपरिग्रहः। स्पर्शनेन्द्रियप्रभवस्येहादे: सर्पोत्पलनालादिवत् समानस्पर्शो विषयः, सर्पोत्पलनालयोश्च तुल्यस्पर्शत्वेनेहाप्रवृत्तिः सुगमैव, आदिशब्दात् स्त्री-पुरुष-लेष्ट्रपलादिसमानस्पर्शवस्तुपरिग्रहः॥ इति गाथार्थः॥२९३॥ अथ यदुक्तं सूत्रे- ‘से जहानानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासेज्जा' इत्यादि, तदनुसृत्य स्वप्ने मनसोऽप्यवग्रहादीन् दर्शयन्नाह एवं चिय सिमिणादिसु मणसो सद्दाइएसु विसएसु। होंतिंदियवावाराभावे वि अवग्गहाईया॥२९४॥ तब 'यह कुष्ठ है या कमल है?' -इस प्रकार की ईहा प्रवृत्त होती है। 'आदि' शब्द से 'क्या यह सप्तच्छद (सप्तपर्णी) है या मतवाले हाथी हैं?', या 'क्या यह कस्तूरी है या जंगली हाथी का मद है?' इत्यादि (उदाहरणों) का भी ग्रहण होता है। (इसी प्रकार,) रसनेन्द्रिय से होने वाले ईहा आदि ज्ञान के, संस्कारित (वंश) करील व मांस आदि की तरह, समानरसधर्मी विषय होते हैं। साफ कर उपयुक्त पदार्थों (मसाले आदि) के मिश्रण से परिष्कृत व चटपटा बनाया हुआ वंशकरील नामक बांस की जाली वाला एक खाद्य पदार्थ होता है, उसका और मांस का, दोनों का स्वाद एक जैसा होता है। इसलिए, अन्धकार आदि में, (इन दोनों में से किसी एक को जिव्हा के अग्रभाग पर रखा जाय तो इस प्रकार ईहा होती है कि 'क्या यह मसालेदार चटपटा वंशकरील है या मांस है?' | आदि शब्द से 'यह गुड़ है या खांड है?', 'यह द्राक्षा है या कोई सूखा ‘राजादन' (रायण, चिरौंजी, पियाल) है?' . इत्यादि (उदाहरणों) का भी ग्रहण होता है। स्पर्शनेन्द्रिय से होने वाले ईहा आदि ज्ञान के सर्प व कमलनाल आदि की तरह 'समानस्पर्शधर्मी विषय' होते हैं। सर्प व कमलनाल -इन दोनों का स्पर्श एक जैसा होता है. इसलिए ईहा की प्रवत्ति सगम ही है अर्थात 'यह सर्प है या कमलनाल? यह ईहा होती है। आदि शब्द से स्त्री व पुरुष, ढेले व पत्थर आदि जैसे समान स्पर्श वाली वस्तुओं (के उदाहरणों) का भी ग्रहण होता है| यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 293 // ___ अब, जो सूत्र में कहा गया है कि 'कोई यथानाम कोई पुरुष अव्यक्त शब्द को सुने' इत्यादि, उसका अनुसरण करते हुए स्वप्न में होने वाले मानसिक अवग्रह आदि का भी निदर्शन (भाष्यकार) ... कर रहे हैं // 294 // एवं चिय सिमिणादिसु मणसो सद्दाइएसु विसएसु। होंतिंदियवावाराभावे वि अवग्गहाईया | .----- विशेषावश्यक भाष्य ---- ---- 427 -
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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