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________________ अथवाऽवग्रहमात्रादपि विशेषपरिच्छेदेऽङ्गीक्रियमाणे ईहादीनामनुत्थानमेव। ततश्च सर्वाऽपि मतिरवग्रहो ग्राह्यः-सर्वस्यापि मतेरवग्रहरूपतैव प्राप्नोतीत्यर्थः। अथवा सर्वाऽपि मतिरपाय एवैकः, प्राप्नोति, अर्थावग्रहे विशेषज्ञानस्याऽऽश्रयणात्, तस्य च निश्चयरूपत्वात्, निश्चयस्य चापायत्वादिति। समयमात्रे चाऽस्मिन्नपाये सिद्धे 'ईहावाया मुहत्तमन्तं तु' इति विरुद्ध्यते। अथवाऽर्थेऽवगृहीते, ईहितेच, अपायः सिद्धान्ते निर्दिश्यते 'उग्गहोईहा अवाओ य' इति क्रमनिर्देशात्, यदि चाऽद्यसमयेऽपि विशेषज्ञानाऽभ्युपगमादपाय इष्यते, तीनवगृहीतेऽनीहिते च तस्मिन्नसौ प्राप्तः। 'वा' इत्यथवा, यदि तृतीयस्थाननिर्दिष्टोऽप्यपायः 'समयम्मि चेव परिचियविसयस्स विण्णाणं' इति वचनात् पट्त्ववैचित्र्येण प्रथममभ्युपगम्यते, तर्हि तस्मादेव पाटववैचित्र्यादवग्रहेहाऽपाय-धारणानां ध्रवं निश्चितमत्क्रम-व्यतिक्रमौ स्याताम। तत्र पश्चानुपूर्वीभवनमुत्क्रमः, अनानुपूर्वीभावस्तु व्यतिक्रमः, तथाहि- यथा शक्तिवैचित्र्यात् कश्चित् (कस्यचित्) प्रथममेवाऽपायो भवताऽभ्युपगम्यते, तथा तत एव कस्याऽपि प्रथमं धारणा स्यात्, ततोऽपायः, ततोऽपीहा, तदनन्तरं त्ववग्रह इत्युत्क्रमः, अन्यस्य (4) अथवा अवग्रह मात्र से यदि विशेष ज्ञान मानने पर तो ईहा आदि की उत्पत्ति का अवसर ही नहीं रहेगा / फलस्वरूप, समस्त मति को अवग्रह रूप में (ही) ग्रहण करेंगे, अर्थात् समस्त मति (सिमट कर, उस) की मात्र अवग्रह रूपता रह जाएगी। (5) अथवा समस्त मति ‘एक अपाय मात्र' रह जाएगी, क्योंकि अर्थावग्रह के विशेष ज्ञान : का सद्भाव माना जा रहा है जो निश्चयरूप होता है और वह निश्चय ‘अपाय' रूप ही (तो) है। समयमात्र में भी अपाय की सिद्धि मानी जाय तो 'ईहा व अपाय -ये मुहूर्तकाल के होते हैं' -इस आगमिक कथन से विरोध प्रसक्त होगा। (6) अथवा, अर्थ का अवग्रहण होने पर, उसकी ईहा होने पर, (उसके बाद) अपाय का होना सिद्धान्त में निर्दिष्ट है, क्योंकि अवग्रह, ईहा, अपाय -यह क्रम वहां निर्दिष्ट है। अब यदि प्रथम समय * में ही विशेष ज्ञान का सद्भाव मानने से अपाय का सद्भाव मान रहे हैं तो जो पदार्थ अवग्रह से गृहीत नहीं है, और ईहा भी जिसकी नहीं हुई है, ऐसे पदार्थ में भी 'अपाय' का सद्भाव मानना पड़ेगा (जो आगम-निर्दिष्ट मतिज्ञान-क्रम से विरुद्ध होगा)। (7) 'वा' यानी अथवा | जो अपाय (मति ज्ञान की उत्पत्ति के क्रम में) तीसरे स्थान पर निर्दिष्ट . है, उक्त अपाय को 'परिचित विषय वाले को एक समय में ही विज्ञान (विशेष ज्ञान) हो जाता है' इस कथन द्वारा पटुता की विचित्रता शक्ति के कारण, अवग्रह-ईहा-अपाय-धारणा का निश्चित ही उत्क्रम व व्यतिक्रम हो जाएगा। इनमें उलटा क्रम होना 'उत्क्रम' होता है, और क्रम का पालन न करना (उल्लंघन करना) 'व्यतिक्रम' होता है। उदाहरणार्थ- जैसे, शक्तिविचित्रता के कारण, किसी को प्रथम ही 'अपाय' हो जाता है- ऐसा आप मान रहे हैं, उसी प्रकार प्रथम समय में ही (किसी को) धारणा हो सकती है, फिर अपाय और फिर ईहा और उसके बाद अवग्रह -इस प्रकार 'उत्क्रम' हो सकता ---------- विशेषावश्यक भाष्य - - - - - - - -
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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