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________________ न च सामान्यरूपतयाऽव्यक्ते शब्देऽगृहीतेऽकस्मादेव 'शब्दः' इति विशेषणबुद्धियुज्यते, अनुस्वारस्याऽलाक्षणिकत्वाद् विशेषबुद्धिरित्यर्थः। अस्यां च विशेषबुद्धौ प्रथममेवेष्यमाणायामादावेवाऽर्थावग्रहकालेऽप्यपायप्रसङ्गः, इत्यसकृदेवोक्तम्॥ इति गाथार्थः // 264 // ननु यदि व्यञ्जनावग्रहेऽप्यव्यक्तशब्दग्रहणं भवेत्, तदा को दोषः स्यात्?, इत्याह अत्थो त्ति विसयग्गहणं, जइ तम्मि वि सो न वंजणं नाम। अत्थोग्गहो च्चिय तओ, अविसेसो संकरो वावि॥२६५॥ [संस्कृतच्छाया:- अर्थ इति विषयग्रहणं यदि तस्मिन्नपि असौ न व्यञ्जनं नाम। अर्थावग्रह एष ततोऽविशेष: संकरो वाऽपि॥] है, क्योंकि (इसके समर्थन में) 'सुप्त-मत्त आदि के सूक्ष्म बोध की तरह' ऐसा (आगमिक) वचन प्राप्त होता है, और 'सुप्त (सोये हुए) आदि व्यक्ति स्वयं भी विज्ञान को नहीं जानते' यह कथन भी प्राप्त होता है, अन्यथा उनका व्यअनावग्रह होना ही असंगत हो जाएगा। (इसके अतिरिक्त, यह भी सच है कि) यदि सामान्य रूप में शब्द का ग्रहण न हो तो अकस्मात् ही 'शब्द' -इस विशेषण वाली बुद्धि का होना भी संगत नहीं होगा। गाथा में 'विशेषणं बुद्धिः' यह पाठ है, यहां अनुस्वार लक्षण-(व्याकरण-) सम्मत नहीं है, (अतः महत्त्वहीन है, निष्प्रयोजन है, उपेक्षणीय है)। इसलिए इसे 'विशेषण-बुद्धि' ऐसा (शुद्ध) पाठ समझना चाहिए, जिसका अर्थ होगा- विशेषण अर्थात् विशेष ज्ञानात्मक बुद्धि / यदि उस विशेष बुद्धि का सद्भाब होना हम प्रथम में ही मान लेंगे तो अर्थावग्रह के प्रथम काल में ही 'अपाय' होने का दोष प्रसक्त होगा (आ जाएगा) - यह बात कई बार बताई जा चुकी है।। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 264 // ___ यदि व्यञ्जनावग्रह में भी अव्यक्त शब्द का ग्रहण हो जाए (मान लिया जाय) तो आखिर दोष क्या है? इस शंका के समाधान हेतु (भाष्यकार) कर रहे हैं // 265 // अत्यो त्ति विसयग्गहणं, जइ तम्मि वि सो न वंजणं नाम / अत्थोग्गहो च्चिय तओ, अविसेसो संकरो वावि | [(गाथा-अर्थ :) 'अर्थ' यानी विषय-ग्रहण / यदि उसे वहां (व्यञ्जनावग्रह में) मान लिया जाय तो वह 'व्यञ्जन' नहीं रह जाता। और (यही नहीं) वह (व्यअनावग्रह) अर्थावग्रह ही हो जाएगा, और फलस्वरूप या तो दोनों में भेद समाप्त हो जाएगा या फिर (एक दूसरे के स्वरूप का मिश्रण रूप) सांकर्य दोष हो जाएगा। Ma 386 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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