________________ . अथ सूत्रावष्टम्भवादिनं परं दृष्टा सौत्रमेव परिहारमाह अहव सुए च्चिय भणियं, जह कोइ सुणेज्ज सहमव्वत्तं। अव्वत्तमणिद्देसं, सामण्णं कप्पणारहियं // 262 // [संस्कृतच्छाया:-अथवा श्रुत एव भणितं यथा कश्चित् शृणुयात् शब्दमव्यक्तम्। अव्यक्तमनिर्देश्यं सामान्यं कल्पनारहितम्॥] अथवा यदि तव गाढः श्रुतावष्टम्भः, तदा तत्राप्येतद् भणितं यदुत-प्रथममव्यक्तस्यैव शब्दोल्लेखरहितस्य शब्दमात्रस्य ग्रहणम्। केन पुनः सूत्रावयवेनेदमुक्तम्?, इत्याह- 'जह कोई सुणेज सहमव्वत्तं ति' / अयं च सूत्रावयवो नन्द्यध्ययने इत्थं द्रष्टव्यः'से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं सदं सुणेज त्ति'। प्रज्ञापनाकार (सूत्रकार) का ही है (अतः वह सब के लिए शिरोधार्य है, किन्तु वहां 'शब्द' से तात्पर्य 'अवगृहीत शब्द-सामान्य' से है, और यह निरूपण भी एक प्ररूपणाकार व वक्ता की दृष्टि से है, श्रोता-ज्ञाता की दृष्टि से नहीं)। वस्तुस्थिति तो यही है, अन्यथा एकसमयवर्ती अर्थावग्रह काल में (तो) 'शब्द' यह विशेषण.ही उपयुक्त नहीं ठहरता, क्योंकि शब्द-निश्चय का काल अन्तर्मुहूर्त माना गया हैयह पहले ही हम बता चुके हैं। अथवा, (आप कहेंगे कि फिर सूत्रकार ने 'शब्द-शब्द' ऐसी विशेष बुद्धि का होना अवग्रह में किस प्रकार प्रतिपादित किया? तो प्रकारान्तर से समाधान यह है कि) सांव्यवहारिक अर्थावग्रह की अपेक्षा से हम सूत्र की (आगे) व्याख्या करेंगे (और उनके कथन की संगति बैठाएंगे), इसलिए उतावले न हों | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 261 // अब, सूत्रावष्टम्भवादी (अर्थात् सूत्र के मात्र शब्दों को ही पकड़ कर व्याख्यान करने का जो आग्रही है, और जो उसमें निहित वास्तविक भाव तक उतरना नहीं चाहता, ऐसे) पूर्वपक्षी को दृष्टि में रख कर 'सौत्र' (सूत्र के शब्दों के आधार पर ही) समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं // 262 // अहव सुए च्चिय भणियं, जह कोइ सुणेज्ज सद्दमव्वत्तं / अव्वत्तमणिद्देसं, सामण्णं कप्पणारहियं // - [(गाथा-अर्थ :) अथवा श्रुत में ही कहा गया है कि जैसे कोई अव्यक्त शब्द को सुने। वहां 'अव्यक्त' (का अर्थ) है- अनिर्देश्य, सामान्य और (नाम, जाति आदि) कल्पना से रहित / ] व्याख्याः - अथवा यदि आपको श्रुत-वचन में (ही) प्रगाढ़ ‘अवष्टम्भ' (अत्यधिक आग्रह, आसक्तिभाव) हो तो (सुनिए-) वहीं (श्रुत में ही) यह कहा गया है प्रथम तो अव्यक्त (यानी) / शब्दोल्लेख-रहित शब्द मात्र का (ही) ग्रहण होता है। (प्रश्न-) ऐसा सूत्र के किस भाग द्वारा कहा गया है? उत्तर दे रहे हैं- (यथा कश्चित् शृणुयात् शब्दमव्यक्तम् -इति)। देखें- नन्दी अध्ययन (सूत्र) में यह सूत्र-भाग इस प्रकार है- (तद् यथानाम कश्चित् पुरुषः अव्यक्तं शब्दं शृणुयात् -इति)।अर्थात् 'यथानाम (अमुक नाम) वाला कोई पुरुष उस अव्यक्त शब्द को सुने'। Ma ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 383 2