________________ वयं तत्र निषेद्धारः। सिद्धं तर्हि परस्य समीहितम्। सिध्येत्, यदि सा व्यञ्जनावग्रहता मनसो भवेत्, न पुनः सा तस्य। कस्य तर्हि सा?, इत्याह-सा खलु प्राप्यकारिणां श्रोत्रादीन्द्रियाणां श्रवण-रसन-घ्राण-स्पर्शनानामित्यर्थः। इदमुक्तं भवति-स्त्यानर्द्धिनिद्रोदये प्रेक्षणक-रङ्गभूम्यादौ गीतादिकं शृण्वतः श्रोत्रेन्द्रियस्य व्यञ्जनावग्रहो भवति, कर्पूरादिकं जिघ्रतो घ्राणेन्द्रियस्य, आमिष-मोदकादिकं भक्षयतो रसनेन्द्रियस्य, कामिनीतनुलतादि स्पृशत: स्पर्शनेन्द्रियस्य व्यञ्जनावग्रहः संपद्यते, न त नयन-मनसोः, वह्नि-क्षुरिकादिविषयकृतदाहपाटनादिप्रसङ्गेन तयोर्विषयप्राप्त्यभावात्, तामन्तरेण च / भावः॥ इति गाथार्थः // 234 // आह- ननु स्त्यानद्धिनिद्रोदये स्वप्नमिव मन्यमानः किं कोऽपि चेष्टां काञ्चित् करोति, येन तत्करणे व्यञ्जनावग्रहः स्यात्?, इत्याशक्य स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयोदाहरणान्याह पोग्गल-मोयग-दन्ते फरुसग-वडसालभंजणे चेव। थीणद्धियस्स एए आहारणा होंति नायव्वा // 235 // रहा होता है, व्यञ्जनावग्रह हो सकता है- यह तात्पर्य है। हम उस (व्यञ्जनावग्रह) का निषेध नहीं कर रहे हैं। (प्रश्न-) तब तो पूर्वपक्षी का मत ही सिद्ध हो गया? (उत्तर-) हां, सिद्ध हो सकता था, बशर्ते वह व्यअनावग्रह मन का होता, किन्तु वह मन का नहीं होता। (प्रश्न-) फिर वह किसका होता है? उत्तर दिया- (सा खलु)। वह (व्यञ्जनावग्रह की स्थिति) तो श्रवण-रसना-घ्राण-स्पर्शन आदि प्राप्यकारी श्रोत्रादि इन्द्रियों की होती है- यह अर्थ है। तात्पर्य यह है कि स्त्यानर्द्धि निद्रा के उदय में नाट्यशाला की दर्शक-दीर्घा में गीत आदि सुनते हुए श्रोत्र इन्द्रिय का व्यञ्जनावग्रह होता है, (इसी प्रकार) कपूर आदि सूंघते हुए घ्राणेन्द्रिय का, मांस, मोदक आदि खाते हुए रसनेन्द्रिय का तथा कामिनी-शरीर आदि को स्पर्श करते हुए स्पर्शनेन्द्रिय का व्यञ्जनावग्रह संपन्न होता है, किन्तु वह नेत्र व मन का नहीं होता, क्योंकि (नेत्र व मन का व्यअनावग्रह मानने पर, इन दो इन्द्रियों के) आग व छुरी आदि विषयों से दाह (जलना) व खण्डित होने का दोष प्रसक्त होगा, अतः दोनों इन्द्रियों को विषय-प्राप्ति (विषय-स्पृष्टता) नहीं होती (ऐसा मानना चाहिए), और विषय-प्राप्ति के बिना व्यञ्जनावग्रह संभव नहीं होता // यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 234 // पूर्वपक्षी ने (पुनः) शंका उपस्थापित की- "स्त्यानर्द्धि निद्रा के उदय में (अनुभूत घटनाओं को) स्वप्न की तरह मान (जान) रहा कोई व्यक्ति कौन-सी क्रियाएं किस प्रकार करता है जिसके करने में व्यञ्जनावग्रह हो जाता है?' इस आशंका को दृष्टि में रख कर (भाष्यकार) स्त्यानर्द्धि निद्रा के उदय से सम्बन्धित (कुछ) उदाहरणों को प्रस्तुत कर रहे हैं ||235 // पोग्गल-मोयग-दन्ते फरुसग-वडसालभंजणे चेव / थीणद्धियस्स एए आहारणा होति नायव्वा // Mia 342 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----