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________________ अथ योषित्संगमे साध्ये व्यञ्जनविसर्गहेतोरनैकान्तिकतामपदर्शयन्नाह सो अज्झवसाणकओ जागरओ वि जह तिव्वमोहस्स। तिव्वज्झवसाणाओ होइ विसग्गो तहा सुमिणे // 229 // [संस्कृतच्छाया:-सोऽध्यवसानकृतो जाग्रतोऽपि यथा तीव्रमोहस्य। तीव्राध्यवसानाद् भवति विसर्गस्तथा स्वप्ने॥] स्वप्ने योऽसौ व्यञ्जनविसर्ग:स तत्प्राप्तिमन्तरेणाऽपि- 'तां कामिनीमहं परिषजामि' इत्यादिस्वमत्युत्प्रेक्षिततीव्राध्यवसायकृतो वेदितव्यः। कस्येव?, इत्याह- जाग्रतोऽपि तीव्रमोहस्य प्रबलवेदोदययुक्तस्य कामिनी स्मरतश्चिन्तयतो दृढं ध्यायतः प्रत्यक्षामिव पश्यतो बुद्धया परिषजतः परिभुक्तामिव मन्यमानस्य यत् तीव्राध्यवसानं तस्माद् यथा व्यञ्जनविसर्गो भवति, तथा स्वप्नेऽपि नितम्बिनीप्राप्तिमन्तरेणाऽपि स्वयमुत्प्रेक्षिततीव्राध्यवसानादसौ मन्तव्यः, अन्यथा तत्क्षण एव प्रबुद्धः सन्निहितां प्रियतमामुपलभेत, तत्कृतानि च स्वप्नोपलब्धानि नख-दन्त-पदादीनि पश्येत्, न चैवम्, तस्मादनैकान्तिकता हेतोः॥ इति गाथार्थः // 229 // अब, (पूर्वपक्ष का प्रत्युत्तर देने की दृष्टि से भाष्यकार) स्त्री-संगम रूपी साध्य की सिद्धि में वीर्य-क्षरण रूप हेतु 'अनेकान्तिक' (दोष से दूषित) है- इसे बता रहे हैं // 229 // सो अज्झवसाणकओ जागरओ विजह तिब्वमोहस्स। तिव्वज्झवसाणाओ होइ विसग्गो तहा सुमिणे // -[(गाथा-अर्थ :) जिस प्रकार जागते हुए व्यक्ति को तीव्र मोह के कारण (कामिनी-संगमसम्बन्धी) तीव्र अध्यवसान से वह (वीर्य-क्षरण) होता है, उसी प्रकार स्वप्न में भी तीव्र अध्यवसान के कारण (वीर्य का) क्षरण होता है (अतः स्त्री-स्पर्श के बिना भी वीर्य-क्षरण होने से, वीर्यक्षरण रूप हेतु की अनैकान्तिकता, अनैकान्तदोषग्रस्तता स्पष्ट है)।] व्याख्या:- स्वप्न में जो वीर्य-क्षरण होता है, वह उस (स्त्री) की प्राप्ति.(स्पर्श आदि) हुए बिना भी, 'उस कामिनी को मैं आलिंगन कर रहा हूं' इत्यादि स्वबुद्धिकल्पित तीव्र अध्यवसान (भावोद्रेक) के कारण से होता है- ऐसा जानना (समझना) चाहिए। (प्रश्न-) किस की तरह? उत्तर दिया- जिस प्रकार जागृत अवस्था में भी जो व्यक्ति तीव्र मोह से ग्रस्त एवं प्रबल 'वेद' (कामुक पुरुषत्व) के उदय से युक्त है, वह कामिनी के स्मरण-चिन्तन व दृढ़ ध्यान करते हुए, किसी स्त्री को मानों प्रत्यक्ष देखता है और उसे आलिंगन करता है और यह समझ लेता है कि उसने उस कामिनी का (भोग) उपभोग कर लिया, इस तरह उसका जो तीव्र अध्यवसान होता है, उसी के कारण वीर्य-क्षरण हो जाता है, उसी प्रकार स्वप्न में भी किसी महिला की प्राप्ति (स्पर्श) के बिना भी स्वयं कल्पित तीव्र अध्यवसान के आधार पर इस (वीर्य-क्षरण) का होना मानना चाहिए, अन्यथा (वास्तविक स्त्री-स्पर्श से जनित मानें तो) उसी क्षण ही जागृत हुए व्यक्ति को निकटस्थ प्रियतमा उपलबध होनी चाहिए, और उस Via 336 -------- विशेषावश्यक भाष्य --. ------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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