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________________ चतुर्थ वाचना :- वीरनिर्वाण के 980 या 993 वर्ष बाद, आ. देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण (वि. 7वीं शती लगभग) के नेतृत्व में वलभी में चतुर्थ वाचना हुई जिसमें पाठान्तरों, वाचना-भेदों का समन्वय, उनमें एकरूपता की स्थापना, असंकलित पाठों का संकलन आदि महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुए। इसमें माथुरी वाचना को प्रमुखता दी गई और वलभी वाचना को पाठान्तर रूप में मान्यता मिली। आचार्य देवर्द्धिगणी के निर्देशन में ही आगमों को लिपिबद्ध व पुस्तकारूढ़ करने का महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न हुआ। आज जो आगम साहित्य उपलब्ध है, उसका मुख्य श्रेय इन्हीं को जाता है। [दिगम्बर परम्परा ग्यारह अंगों का लोप, तथा बारहवें अंग दृष्टिवाद का कुछ अंश सुरक्षित मानती है, और इसकी सुरक्षा का श्रेय आ. धरसेन, एवं आ. पुष्पदन्त व आ. भूतबली को जाता है।] अनुयोगों में आगम-विभाजन समस्त आगम साहित्य को आर्यवज्र के पट्टाधिकारी आचार्य आर्यरक्षित ने विषयवस्तु की दृष्टि से स्थूल रूप से चारों भागों (वर्गों) में विभाजित किया (विशेषावश्यक भाष्य, गाथा-2286-2291,2511 व वृत्ति) / भविष्य में शिष्य-परम्परा में मेधा, धारणा शक्ति के ह्रास को ध्यान में रख कर, भावी अल्पमेधावी लोगों पर अनुग्रह हेतु यह विभाजन किया गया था। वे हैं : (1) धर्मकथानुयोग (कथा साहित्य) (2) चरणकरणानुयोग (आचारविषयक) (3) गणितानुयोग (लोक-रचना, खगोलभूगोलविषयक) (4) द्रव्यानुयोग (द्रव्य-स्वरूप विषयक) अन्य परम्परा में इन्हीं चारों को पृथक् रीति से इस प्रकार विभाजित किया है- प्रथमानुयोग (धर्मकथा), चरणानुयोग (आचार), करणानुयोग (लोकस्वरूपादि), द्रव्यानुयोग (तत्त्वस्वरूप)। .. अनुयोग-विभाजन से तात्पर्य है- ऐसा विभाजन, जो 'अनु' (यानी मूल सूत्रादि के अनुरूप) 'योग' अर्थात् सुसंगत, अविरुद्ध व्याख्यान करने में उपयोगी हो। अंगबाह्य आगम और उपांगादि विभाग नन्दीसूत्र (5 वां प्रकरण) में अङ्गबाह्य आगमों के प्रमुखत: दो विभाग हैं- (1) आवश्यक सूत्र, और (2) आवश्यक-व्यतिरिक्त। आवश्यकव्यतिरिक्त के अन्तर्गत उत्कालिक व कालिक भेद किये गए हैं। स्वाध्यायकाल जिनका नियत है, वे 'कालिक' हैं, शेष 'उत्कालिक' (द्र. राजवार्तिक- 1/20/14, विशेषावश्यक भाष्य, गा. 2294-95, नन्दी चूर्णि- पृ. 57) / 'कालिक' के अन्तर्गत उत्तराध्ययन आदि 31 आगम, तथा 'उत्कालिक' के अन्तर्गत दशवैकालिक आदि 29 आगम परिगणित किये गये हैं। उक्त विभाजन से एक बात तो स्पष्ट है कि अंगबाह्य आगमों में आवश्यक' सूत्र का प्रथम स्थान है। [प्रस्तुत कृति विशेषावश्यक भाष्य इसी सूत्र के सामायिक अध्ययन पर रचित है।] Re0@RB0RRB0BR [27] Re@RSORB0BReer
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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