________________ मइसहियं भावसुयं तं निययमभासओ वि मइरन्ना। मइसहियं ति जमुत्तं सुओवउत्तस्स भावसुयं // 148 // [संस्कृतच्छाया:- सामन्या वा बुद्धिर्मतिश्रुतज्ञाने तया ये दृष्टाः। भाषते, संभवमात्रं गृहीतं न तु भाषणामात्रम् // मतिसहितं भावश्रुतं तद् नियतमभाषमाणस्यापि मतिरन्या। मतिसहितमिति यदुक्तं श्रुतोपयुक्तस्य भावश्रुतम्॥] स्वविहितप्रथमव्याख्यानापेक्षया वाशब्दो यदिवेत्यर्थः, 'बुद्धिद्दिढे अत्थे' इत्यत्र येयं बुद्धिः, असौ सामान्या गृह्यते, ततः किम्? इत्याह- 'मइ-सुयनाणाई ति' / मति-श्रुतज्ञाने द्वे अपि बुद्धिरिहेत्यर्थः, तया मतिश्रुतज्ञानात्मिकया बुद्ध्या ये दृष्टा भावास्तेषु मध्ये यान् भाषते तद् भावश्रुतमित्युत्तरगाथायां संबन्धः। भाषत इत्यत्र च भाषणस्य संभवमात्रं गृहीतम्, न तु भाषणमात्रम्। ततश्चेदमुक्तं भवति- तत्राऽन्यत्र वा देशे, तदाऽन्यदा वा काले, स चाऽन्यो वा पुरुषः, सति सामग्रीसंभवे निश्चयेनैतान् भाषत एव, इत्येवं यान् भावानन्तर्विकल्पे प्लवमानान् भाषणयोग्यतायां व्यवस्थापयति, तेऽभाष्यमाणा अपि भाषणयोग्याः सन्तो भावश्रुतं भवन्ति, न तु - मइसहियं भावसुयंतं निययमभासओ वि मइरन्ना। 'मइसहियं ति जमुत्तं सुओवउत्तस्स भावसुयं // [(गाथा-अर्थः) वहां 'बुद्धि' सामान्य अर्थ में गृहीत है (अतः वह मति व श्रुत -इन दोनों का वाचक शब्द है)। मति व श्रुत ज्ञान रूप ‘मति' से देखे पदार्थों को बोलता है (वह भावश्रुत है), यहां 'बोलना' इस पद को (बोले जाने की योग्यता, या) संभावना मात्र अर्थ यहां गृहीत है। 'भाषण' मात्र (जितना बोला गया)- यह अर्थ गृहीत नहीं है। भले ही न बोले, किन्तु जो मति-सहित (मति-श्रुतसहित) है, उसके भावश्रुत है ही। उससे जो अन्य है, वह मति ज्ञान है। ‘मतिसहित' यह जो कहा गया है- इसका तात्पर्य है कि श्रुत-उपयोग वाले को ही भावश्रुत होता है।] व्याख्याः- (वा) स्वकत इस प्रथम व्याख्यान को प्रस्तत करने की दृष्टि से कहा- अथवा। 'बुद्धिदृष्ट' इस पद में आए 'बुद्धि' शब्द को सामान्य (ज्ञान) अर्थ में लिया गया है। उसका फल क्या हुआ? उत्तर दिया- (मतिश्रुत-ज्ञाने)। 'बुद्धि' का अर्थ हुआ- मति व श्रुत-ये (दोनों) ज्ञान / उसे मतिश्रुतज्ञानात्मिका बुद्धि द्वारा गृहीत जो पदार्थ हैं, उनमें से जिन्हें बोलता है, वह ‘भावश्रुत' है- इस प्रकार उत्तर गाथा से जोड़ना चाहिए। यहां 'बोलता है' इस कथन से 'भाषण की संभावना' अर्थ गृहीत है न कि 'मात्र बोलना' अर्थ। इस तरह तात्पर्य यह हुआ- वहां या किसी अन्य देश में, उस समय या किसी अन्य समय में, वह या अन्य पुरुष, (अपेक्षित) सामग्री मिलने पर निश्चय ही इन (मतिश्रुत ज्ञानोपलब्ध पदार्थों) का भाषण करता ही है (अर्थात् वे भाषणयोग्य तो हैं ही)। इस वस्तुस्थिति के अनुरूप वक्ता में तैरने वाले जिन पदार्थों को भाषण-योग्य रूप में व्यवस्थित (सुस्थिर) करता है, वे नहीं बोले गए होने पर भी भाषणयोग्य होने से भावश्रुत (रूप में स्वीकृत) होते हैं, न कि बोले गए या बोले जा रहे पदार्थ ही (भावश्रुत) होते हैं। इस प्रकार, मति-उपलब्ध जो पदार्थ अनभिलाप्य SA ---------- विशेषावश्यक भाष्य -- -- .-----223 - --