________________ अत्र विनेयः प्राह कह मइ-सुओवलद्धा तीरंति न भासिउं, बहुत्ताओ। सव्वेण जीविएण वि भासइ जमणंतभागं सो॥१३८॥ [संस्कृतच्छाया:- कथं मतिश्रुतोपलद्धाः तीर्यन्तेन भाषितुं बहुत्वात् / सर्वेण जीवितेनाऽपि भाषते यदनन्तभागं सः॥] नन्वनन्तरगाथायां मत्युपलब्धाः सर्वेऽपि वक्तुं न शक्यन्त इत्युक्तम्, पूर्वं तु श्रुतोपलब्धा अपि सर्वेऽभिधातुं न पार्यन्त इत्यभिहितम्, तदेतत् कथं, यद् मति-श्रुतोपलब्धा भावा न तीर्यन्ते भाषितुम्? / अत्राह- बहुत्वात् प्राचुर्यात् / तत्रैतत् स्यात्- कुतः पुनरेतावद् बहुत्वं तेषां निश्चितम्? इत्याह- यद् यस्मात् कारणात् सर्वेणाऽप्यायुषा स मति-श्रुतज्ञानी समुपलब्धानामनामनन्ततममेव भागं भाषत इत्यागमे निर्णीतम्, तस्मादृ बहुत्वावगमः॥ इति गाथार्थः // 138 // अथ मत्याधुपलब्धार्थानां सामस्त्येनाऽभिधानाशक्यत्वे पूर्वोक्तम्, अपरमपि च हेतुं विषयविभागेनाऽभिधित्सुराह . तीरंति न वोत्तुं जे सुओवलद्धा बहुत्तभावाओ। सेसोवलद्धभावा साभव्वबहुत्तओऽभिहिया॥१३९॥ यहां किसी शिष्य ने पूछा (138) . . . कह मइ-सुओवलद्धा तीरंति न भासिउं, बहुत्ताओ। सव्वेण जीविएण वि भासइ जमणंतभागं सो // [(गाथा-अर्थः) मतिश्रुत से उपलब्ध सभी पदार्थों को कहा नहीं जा सकता है- ऐसा क्यों? (उत्तर-) मति-श्रुत से ज्ञात ज्ञान (इतना) अधिक है कि सम्पूर्ण जीवन में भी, उस (ज्ञान) के अनन्तवें भाग को भी वह (मतिश्रुतज्ञानी) नहीं बोल सकता।] व्याख्याः- (प्रश्न-) पूर्व की गाथा (137) में तो कहा था कि मति से उपलब्ध सभी पदार्थों का बोलना सम्भव नहीं, और पूर्व गाथा (130) में कहा- कि श्रुत से उपलब्ध सभी पदार्थों को बोलना सम्भव नहीं। (अस्तु) मति व श्रुत से उपलब्ध सभी पदार्थों को कह पाना क्यों सम्भव नहीं है? उत्तर है- (बहुत्वात्)। दोनों का ही बहुत्व या प्राचुर्य है। ठीक है, किन्तु उनका बहुत्व किस प्रकार निर्णीत होता है? उत्तर है- चूंकि सम्पूर्ण आयु पर्यन्त भी वह मति-श्रुतज्ञानी उपलब्ध (ज्ञात) पदार्थों के अनन्तवें भाग को ही बोल पाता है- ऐसा आगम में सिद्धान्त रूप में कहा गया है। इसलिए इनका बहुत्व ज्ञात होता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ॥१३८॥ ____मति आदि से उपलब्ध समस्त पदार्थों को पूर्व में अनभिलाप्य (नहीं कह सकने योग्य) बताया। इसी संदर्भ में विषय-विभागपूर्वक अन्य (पृथक्-पृथक्) हेतु की विवक्षा से कह रहे हैं (139) तीरंति न वो जे सुओवलद्धा बहुत्तभावाओ। सेसोवलद्धभावा साभव्वबहुत्तओऽभिहिया॥ ----- विशेषावश्यक भाष्य ---- ---- 213 र