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________________ कुतस्तत् तस्य लक्षणम्?, इत्याह सुयविण्णाणप्पभवं दव्वसुयमियं जओ विचिंते। पुव्वं, पच्छा भासइ लक्खिजइ तेण भावसुयं // 113 // [संस्कृतच्छाया:- श्रुतविज्ञानप्रभवं द्रव्यश्रुतमिदं यतो विचिन्त्य। पूर्व, पश्चाद् भाषते लक्ष्यते तेन भावश्रुतम्॥] श्रुतविज्ञानप्रभवं सविकल्पकविवक्षाज्ञानकार्य शब्दरूपं द्रव्यश्रुतमिदं यत् परैर्मतिपूर्वत्वेनेष्यते, कथं पुनस्तद्भावश्रुतप्रभवं विज्ञायते?, इत्याह- यतः सर्वोऽपि पूर्वं विचिन्त्य वक्तव्यमर्थं चित्ते विकल्प्य पश्चात् शब्दं भाषते, यच्च तच्चिन्ताज्ञानं तच्छ्रुतानुसारित्वाद् भावश्रुतम्, इति भावश्रुतप्रभवता द्रव्यश्रुतस्य विज्ञायते, यच्च यस्मात् प्रभवति तत् तस्य कार्यम्, अतस्तेन कार्यभूतेन द्रव्यश्रुतेन स्वकारणभूतं भावश्रुतं लक्ष्यत इति तत् तस्य लक्षणमुक्तम्, अस्ति भावश्रुतमत्र, तत्कार्यस्य शब्दस्य श्रवणात्, इत्येवं तेन भावश्रुतस्य लक्ष्यमाणत्वादिति। (मति व श्रुत में कार्यकारण भाव का विचार) द्रव्यश्रुत भावश्रुत का लक्षण किस तरह है? इस जिज्ञासा के समाधान हेतु (भाष्यकार अग्रिम गाथा में) कह रहे हैं (113) सुयविण्णाणप्पभवं दव्सुयमियं जओ विचिंतेउं / पुव्वं, पच्छा भासइ लक्खिज्जइ तेण भावसुयं // [(गाथा-अर्थः) श्रुतविज्ञान से द्रव्यश्रुत उत्पन्न होता है, क्योंकि पहले (व्यक्ति) विचारता है और बाद में बोलता है, इस प्रकार उस (द्रव्यश्रुत) से भावश्रुत लक्षित होता है (अतः द्रव्यश्रुत भावश्रुत का लक्षण है)।] व्याख्याः- (प्रश्न-) अन्य (व्याख्याता) लोग श्रुत को मतिपूर्वक मानते हैं क्योंकि श्रुतविज्ञान से द्रव्यश्रुत होता है। किन्तु द्रव्यश्रुत भावश्रुत से उत्पन्न होता है- यह कैसे ज्ञात (निर्णीत) होता है? (उत्तर-) चूंकि (बोलने से पूर्व) क्या बोलना है- इस विषय में सभी लोग पहले मन में सोचते हैं, और उसके बाद ही शब्द उच्चारित करते हैं। वह जो सोचना है, वह चिन्तनात्मक ज्ञान श्रुतानुसारी होने के कारण 'भावश्रुत' (ही) है, अतः द्रव्यश्रुत की भावश्रुत से उत्पत्ति हुई है- ऐसा ज्ञात होता है। चूंकि जिससे जो उत्पन्न होता है, वह उसका कार्य कहा जाता है, अतः उस कार्यभूत द्रव्यश्रुत के आधार पर उसका कारणभूत भावश्रुत लक्षित होता है- ज्ञात होता है, इसलिए वह द्रव्यश्रुत भावश्रुत का लक्षण (सिद्ध होता) है। जैसे- भावश्रुत (का सद्भाव) है क्योंकि उसके कार्यरूप शब्द का श्रवण हो रहा हैइस प्रकार (के अनुमान) से भावश्रुत का सद्भाव लक्षित होता है। 20 180 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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