________________ यदिन्द्रिय-मनोनिमित्तं ज्ञानमुपजायते तदात्मनः परोक्षम्। कुतः?, इत्याह- संशयादिभावादिति, आदिशब्दाद् विपर्ययाऽनध्यवसाय-निश्चयपरिग्रहः। तत्कारणमिति तानीन्द्रिय-मनांसि कारणं यस्य साभासानुमानस्य सम्यगनुमानस्य च तत् तत्कारणं ज्ञानमन्यत्राऽपि परोक्षं दृष्टम्, यथा साभासमनुमानं सम्यगनुमानं चेत्येवं लुप्तचकारस्य दर्शनाद् दृष्टान्तद्वयमिह द्रष्टव्यम्। तत्र संशय-विपर्ययाऽनध्यवसायसंभवलक्षणे हेतौ प्रथमो दृष्टान्तः, निश्चयसंभवस्वरूपे तु हेतौ द्वितीयो दृष्टान्तः। तथाहि प्रयोगः- यदिन्द्रिय-मनोनिमित्तं ज्ञानं तत् परोक्षम्, संशय-विपर्ययाऽनध्यवसायानां तत्र संभवात्, इन्द्रिय-मनोनिमित्ताऽसिद्धा-उनैकान्तिकविरुद्धानुमानाभासवत्, इति प्रथमः प्रयोगः। यदिन्द्रिय-मनोनिमित्तं ज्ञानं तत् परोक्षम्, तत्र निश्चयसंभवात्, धूमादेरग्न्याद्यनुमानवत्, इति द्वितीयः। यत् पुनः प्रत्यक्षं तत्र संशय-विपर्यय-अनध्यवसाय-निश्चयाः न भवन्त्येव, यथाऽवध्यादिषु, इति विपर्ययः। ननु निश्चयसंभवलक्षणो हेतुरवध्यादिष्वपि वर्तत इत्यनैकान्तिक इति चेत्। नैवम्, अभिप्रायाऽपरिज्ञानात्, संकेतस्मरणादिपूर्वको हि निश्चयोऽत्र विवक्षितः, तादृशश्चाऽयमवध्यादिषु नास्ति, ज्ञानविशेषत्वात् तेषाम्, इत्यदोषः / इति गाथार्थः॥१३॥ व्याख्याः- इन्द्रिय व मन के निमित्त से जो आत्मा को ज्ञान होता है, वह परोक्ष (ही) है। क्यों? उत्तर- (संशयादिभावात्) -अर्थात् उसमें संशय आदि होते हैं, इसलिए। आदि पद से विपर्यय, अनध्यवसायं व (संकेतस्मरण पूर्वक बाद में होने वाले) निश्चय का ग्रहण करना चाहिए। साभास अनुमान यह दृष्टांत है। 'च' पद से 'सम्यक् अनुमान' का भी (दृष्टान्त रूप से) ग्रहण कर दो दृष्टान्तों का निदर्शन यहां समझना चाहिए। जैसे- साभास अनुमान (अनुमानाभास) और सम्यक् अनुमान के कारण इन्द्रिय व मन हैं, उनसे होने वाले ज्ञान की परोक्षता अन्यत्र देखी (मानी) जाती है। - वहां (उक्त दो दृष्टांतों में) संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय के सद्भाव रूपी हेतु को प्रथम (साभास अनुमान) दृष्टान्त में विपर्यय, अनध्यवसाय का सद्भाव रूप हेतु प्रयुक्त है, और निश्चय का सद्भाव रूप हेतु द्वितीय (सम्यक् अनुमान) दृष्टान्त में प्रयुक्त समझना चाहएि। अब (दोनों) अनुमानवाक्य इस प्रकार हैं- जो इन्द्रियमनोनिमित्तक ज्ञान है, वह परोक्ष है, चूंकि वहां संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय की वहां संभावना है, इन्द्रियमनोनिमित्तक असिद्ध, अनैकान्तिक व विरुद्ध (दोषों से युक्त) अनुमानाभास की तरह। यह प्रथम अनुमान-दृष्टान्त है। अब द्वितीय अनुमान-दृष्टान्त (सम्यक् अनुमान) इस प्रकार है- जो इन्द्रियमनोनिमित्तक ज्ञान है, वह परोक्ष है, क्योंकि वहां (बाद में) निश्चय होता है, धूम आदि हेतु से होने वाले अग्नि आदि के (सम्यक्) अनुमान की तरह। अब व्यतिरेक (विपर्यय) दृष्टान्त इस प्रकार है- जो प्रत्यक्ष होता है, वहां संशय, विपर्यय अनध्यवसाय नहीं होते और (बाद में) निश्चय भी नहीं होता, जैसे अवधि आदि ज्ञान। . (शंकाकार-) निश्चय का सद्भाव रूप हेतु तो अवधि आदि में भी है, इसलिए आप का (द्वितीय दृष्टान्तरूप) अनुमान (प्रयोग) 'अनैकान्तिक' दोष से दूषित है (अर्थात् विपक्ष में भी जो हेतु रहे, वह 'अनैकान्तिक' दोषयुक्त होता है। अवधि आदि प्रत्यक्ष ज्ञान के उदाहरण 'विपक्ष' हैं, वहां निश्चय रूप हेतु विद्यमान है)। (उत्तर-) यह दोष नहीं घटित होता। क्योंकि 'निश्चय' से हमारा जो तात्पर्य है- उसे आपने नहीं समझा | हमारा तात्पर्य उस निश्चय से है जो संकेत-स्मरण आदि के बाद ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 145 AM