________________ अथ केवलज्ञानस्य सर्वोपरिनिर्देशे कारणमाहअन्ते केवलमुत्तम-जइसामित्तावसाणलाभाओ। एत्थं च मइ-सुयाई परोक्खमियरं च पच्चक्खं // 88 // [ संस्कृतच्छाया:- अन्ते केवलमुत्तम-यतिस्वामित्वाऽवसानलाभात् / अत्र च मतिश्रुते परोक्षमितरच्च प्रत्यक्षम्॥] अन्ते सर्वज्ञानानामुपरि केवलज्ञानमभिहितम्। कुतः?, इत्याह- भावप्रधानत्वाद् निर्देशस्य-उत्तमत्वात्, सर्वोत्तमं हि केवलज्ञानम्, . अतीता-ऽनागत-वर्तमाननिःशेषज्ञेयस्वरूपावभासित्वादिति / यथा च मनःपर्यायज्ञानस्य यतिरेव स्वामी, तथा केवलज्ञानस्यापि, ततो . यतिस्वामित्वसाम्याद् मनःपर्यायज्ञानानन्तरं केवलज्ञानमभिहितम्। तथा समस्तापरज्ञानानामवसान एवाऽस्य लाभादवसान एव निर्देश इति। छद्मस्थसाम्य है। दोनों ही चूंकि पुद्गल को ही विषय करते हैं, अतः (दोनों में) विषय-साम्य है। दोनों ही क्षायोपशमिक भाव रूप हैं, इसलिए (दोनों में) भाव-साम्य भी है। ये दोनों ही साक्षात् ज्ञाता हैं (आत्मा द्वारा इन दोनों के माध्यम से, बिना इन्द्रियादि की परतन्त्रता के, साक्षात् ज्ञान होता है), इसलिए प्रत्यक्षत्व-साम्य भी है। इसी प्रकार, अन्य भी समानता समझ लेनी चाहिए | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ |87 // अब, सब ज्ञानों के अंत में केवल ज्ञान के निर्देश का क्या कारण है- यह बता रहे हैं (88) अन्ते केवलमुत्तम-जइसामित्तावसाणलाभाओ। , एत्थं च मइ-सुयाइं परोक्खमियरं च पच्चक्खं // [(गाथा-अर्थः) चूंकि 'केवलज्ञान' सर्वोत्तम है, क्योंकि यह (अप्रमत्त) यति को होता है और यह सबसे अंत में प्राप्त होता है, इसलिए उसे (सब के) अंत में कहा गया है। इन (पांचों) ज्ञानों में मति, श्रुत- ये दो ज्ञान परोक्ष हैं, बाकी (तीनों) ज्ञान प्रत्यक्ष (माने जाते) व्याख्याः- अन्त में, अर्थात् सभी ज्ञानों के बाद, 'केवलज्ञान' का कथन किया गया है। ऐसा क्यों? उत्तर दे रहे हैं- निर्देश में भाव (की उत्तमता) को प्रमुखता दी जाती है, और भाव (स्वरूप) की दृष्टि से केवलज्ञान उत्तम है। वह अतीत-भविष्य व वर्तमान -इन तीनों कालों के समस्त प्रमेय पदार्थों के स्वरूप का ज्ञाता होता है, इसलिए वह (सब ज्ञानों में) सर्वोत्तम है। जैसे मनःपर्यय ज्ञान का स्वामी (अप्रमत्त) यति होता है, वैसे ही केवलज्ञान भी (अप्रमत्त यति को होता है), इस तरह यतिस्वामित्वरूपी साधर्म्य के कारण मनःपर्यायज्ञान के तुरन्त बाद 'केवलज्ञान' कहा गया है। केवलज्ञान' की प्राप्ति(अन्य) समस्त ज्ञानों का अंत होने के बाद होती है- इसलिए 'केवलज्ञान' का अंत में निर्देश किया गया है। Mia 138 -------- विशेषावश्यक भाष्य --