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________________ ततश्च यद् यस्मात् कारणात् तेनाऽनन्तरोक्तेनाऽवधिना जीवो द्रव्यादि 'मुणति' जानाति। कथंभूतं सत्?, इत्याह- परस्परं नियमितमिति शेषः। वक्ष्यति च अंगुलमावलिआणं भागमसंखेज दोसु संखेजा। अंगुलमावलिअन्तो आवलिआ अंगुलपुहत्तं॥ हत्थम्मि मुहुत्तन्तो दिवसंतो गाउयम्मि बोधव्वे" [अङ्गलावलिकयोर्भागमसंख्येयं द्वयोः संख्येयौ। अङ्गु लावलिकान्तरावलिका अङ्गु लपृथक्त्वम् // हस्ते मुहूर्तान्तर्दिवसान्तर्गव्यूते बोद्धव्यः] इत्यादि। तस्मादनया परस्परोपनिबन्धलक्षणया मर्यादया यतो जीवस्तेनाऽवधिना द्रव्यादिकं 'मुणति' (जानाति), ततोऽवधिरप्युपचाराद् . मर्यादेति भावः। अवधिश्चासौ ज्ञानं चेत्यवधिज्ञानम्, इति प्रक्रमलब्धेन ज्ञानशब्देन समासः॥ इति गाथार्थः // 82 // . आधार पर स्वयं ही समझ लेना चाहिए। (स च मर्यादा-) उपर्युक्त स्वरूप वाला अवधि ज्ञान मर्यादा के साथ अर्थ-ज्ञान में प्रवृत्त होता है, इसलिए उसे ज्ञान को भी उपचार से मर्यादा कहा जाता है -इसी बात को 'यत् तेन' इत्यादि तीसरे चरण द्वारा यहां बताया गया है। अवधि शब्द पुल्लिङ्ग है, फिर भी चूंकि प्राकृत में प्रयुक्त होने से लिङ्ग-विपर्यय भी होता है, इस कारण से यहां वह स्त्रीलिङ्ग में प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार, इस पूर्वोक्त स्वरूप वाले अवधि द्वारा जीव चूंकि द्रव्य आदि को जानता है इसलिए उसे अवधि कहते हैं। किस रूप में द्रव्य आदि को जानता है? इसके उत्तर में कहा- परस्पर नियमित मर्यादित रूप में जानता है। इसी सम्बन्ध में आगे भाष्यकार द्वारा इस ग्रन्थ की 608 आदि गाथाओं द्वारा कहा गया है "क्षेत्र की अपेक्षा से अंगुल के असंख्यातवें भाग को देखता हुआ, काल की अपेक्षा से आवलिका के असंख्यात भाग तक अवधिज्ञानी देखता है। अंगुल के संख्यात भाग को देखता हुआ, काल की अपेक्षा से आवलिका के संख्यात भाग पर्यन्त देखता है। अंगुल प्रमाण सम्पूर्ण क्षेत्र को देखता हुआ काल की दृष्टि से आवलिका के अन्तर्भाग पर्यन्त देखता है। आवलिका के पूर्ण काल तक देखने वाला क्षेत्र की अपेक्षा से अंगुल-पृथक्त्व [पृथक्त्व= 2 से 9 तक की संख्या को देखता है। हस्तप्रमाण क्षेत्र को देखता हुआ, अवधिज्ञानी काल की अपेक्षा से अन्तर्मुहूर्त तक देखता है। इत्यादि। अतः तात्पर्य यह है कि इस परस्पर-निबद्धता रूप मर्यादा के साथ चूंकि जीव उक्त अवधि से द्रव्य आदि को जानता है, इसलिए अवधि को भी उपचार से 'मर्यादा' इस नाम से अभिहित किया गया है। अवधि ही है ज्ञान, वह हुआ अवधिज्ञान / इस प्रकार अवधि व ज्ञान में परस्पर समानाधिकरणता की संगति होने से प्रकरणगत ज्ञान शब्द के साथ अवधि शब्द का कर्मधारय समास होना उपयुक्त है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 82 // V 130 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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