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________________ नामाइतियं दव्वट्टियस्स भावो य पजवनयस्स। संगह-व्यवहारा पढमगस्स सेसा य इयरस्स // 75 // [संस्कृतच्छाया:- नामादित्रिकं द्रव्यास्तिकस्य भावश्च पर्यवनयस्य। संग्रहव्यवहारौ प्रथमकस्य शेषाश्चेतरस्य॥] एतेषु नामादिषु मध्ये नाम-स्थापना-द्रव्यनिक्षेपत्रयं द्रव्यास्तिकनयस्यैवाऽभिमतं न पर्यायास्तिकस्य, नामादिनिक्षेपत्रयस्य विवक्षितभावशून्यत्वात्, पर्यायास्तिकस्य तु भावग्राहित्वादिति। भावो' भावनिक्षेपः पुनः पर्यायास्तिकनयस्याऽभिमतो नेतरस्य, तस्य द्रव्यमात्रग्राहित्वेन भावाऽनवलम्बित्वादिति। आह- ननु नया नैगमादयः प्रसिद्धाः, ततस्तैरेवाऽयं विचारो युज्यते, अथ तेऽत्रैव द्रव्यपर्यायास्तिकनयद्वयेऽन्तर्भवन्ति, तर्जुच्यतां कस्य कस्मिन्नन्तर्भाव:?, इत्याशङ्क्याह- 'संगहेत्यादि' ।नैगमस्तावत् सामान्यग्राही संग्रहेऽन्तर्भवति, विशेषग्राही तु व्यवहारे, संग्रहव्यवहारौ तु प्रस्तुतनयद्वयस्य मध्ये प्रथमकस्य द्रव्यास्तिकस्य मतमभ्युपगच्छतः- द्रव्यास्तिकमतेऽन्तर्भवत इति तात्पर्यम्। शेषास्तु ऋजुसूत्रादय इतरस्य द्वितीयस्य पर्यायास्तिकस्य मतमभ्युपगच्छन्तोऽत्रैवाऽन्तर्भवन्तीति हृदयम्। // 75 // नामाइतियं दव्वट्ठियस्स भावो य पज्जवनयस्स। . संगह-ववहारा पढमगस्स, सेसा य इयरस्स // [(गाथा-अर्थः) नाम आदि तीन (नयों) को द्रव्यास्तिक नय स्वीकार करता है और 'भाव' (नय) को पर्यायास्तिक नय / (नय के द्रव्यास्तिक व पर्यायास्तिक- इन दो प्रमुख भेदों में) द्रव्यास्तिक नय को संग्रह व व्यवहार अनुसरण करते हैं तो शेष (ऋजुसूत्र आदि नय) अन्य (पर्यायास्तिक नय) का (अनुसरण करते हैं)।] . व्याख्याः- इस नाम आदि में नाम, स्थापना व द्रव्य- ये तीन निक्षेप द्रव्यास्तिक नय द्वारा मान्य या समर्थित हैं, पर्यायास्तिकनय द्वारा नहीं, क्योंकि नामादि तीनों निक्षेप विवक्षित 'भाव' से शून्य हैं, जब कि पर्यायास्तिक नय तो भावग्राही है। भाव यानी भावनिक्षेप पर्यायास्तिक नय द्वारा अभिमत या मान्य है, किसी अन्य नय का नहीं, क्योंकि अन्य नय (द्रव्यास्तिक नय) द्रव्यमात्र को ग्रहण (विषय) करता है, भाव का अवलम्बन नहीं लेता। ___(शंका-) नैगम आदि नय प्रसिद्ध हैं, अतः उन्हीं के आधार पर नयों का विचार करना संगत है (द्रव्यास्तिक व पर्यायास्तिक नय के आधार पर क्यों विचार किया गया है?)? यदि यह कहा जाय कि नैगम आदि नय द्रव्यास्तिक व पर्यायास्तिक-इन (मूलभूत) दो नयों में अन्तर्भूत हैं, अतः उन्हीं के आधार पर नयों का विचार किया जा रहा है तो आप यह बताएं कि कौन-कौन नय (द्रव्यास्तिक व पर्यायास्तिक-इन दोनों में से) किसमें अन्तर्भूत हैं? इस प्रश्न का उत्तर देने हेतु कहा-संग्रह और व्यवहार इत्यादि / सामान्य मात्र का ग्राहक जो नैगमनय है, वह संग्रह नय में अन्तर्भूत है, और जो विशेषग्राही (नैगमनय) है, वह व्यवहार नय में अन्तर्भूत है। संग्रह व व्यवहार नय तो प्रस्तुत दो नयों a 118 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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