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________________ [संस्कृतच्छाया:- इति सर्वभेदसंघातकारिणो भिन्नलक्षणा एते। उत्पादा इति यदिव धर्मा प्रतिवस्तु आयोज्याः॥] , इत्येवं ये पूर्वं भिन्नलक्षणा भिन्नस्वरूपा धर्मा नामादयः प्रोक्तास्ते प्रतिवस्त्वायोज्या आयोजनीया इति संबन्धः। कथंभूताः सन्तः?, इत्याह- भेदश्च संघातश्च भेदसंघातौ, सर्वस्य स्वाश्रयभूतवस्तुनो भेदसंघातौ तौ कर्तुं शीलं येषां ते सर्वभेदसंघातकारिणो निजाश्रयस्य सर्वस्याऽपि वस्तुनः कथञ्चिद् भेदकारिणः, कथञ्चित्त्वभेदकारिण इत्यर्थः। तथाहि- केनचिदिन्द्र इत्युच्चरितेऽन्यः प्राह- किमनेन नामेन्द्रो विवक्षितः, आहोस्वित् स्थापनेन्द्रः, द्रव्येन्द्रः, भावेन्द्रो वा?। नामेन्द्रोऽपि द्रव्यतः किं गोपालदारक: हालिकदारकः, क्षत्रियदारकः ब्राह्मणदारकः वैश्यदारकः शद्रदारको वा? इत्यादि क्षेत्रतोऽपि नामेन्द्रः किं भारतः, ऐरावतः, महाविदेहजो वा? इत्यादि। कालतोऽपि किमतीतकालसंभवी, वर्तमानकालभावी, भविष्यन् वा? इत्यादि, अतीतकालभाव्यपि किमितोऽनन्ततमसमयभावी, असंख्याततमसमयभावी, संख्याततमसमयभावी वा? इत्यादि। भावतोऽपि किं कृष्णवर्णः, गौरवर्णः, दीर्घः, मन्थरो वा? इत्यादि। [(गाथा-अर्थः) ये (नाम आदि चारों नय) परस्पर भिन्न-भिन्न लक्षण वाले हैं, किन्तु (वस्तुतः) अपने आश्रयभूत समस्त वस्तु के (कथंचिद्) भेद व संघात (अभेद) के कारक हैं। उत्पाद आदि की तरह ही इन (चारों) को प्रत्येक वस्तु में आयोजित-नियोजित करना चाहिए।] ___ व्याख्याः - इस प्रकार, वे पूर्वोक्त जो भिन्न-भिन्न लक्षण (स्वरूप) वाले नाम आदि कहे गए हैं, उन्हें प्रत्येक वस्तु में आयोजित-नियोजित करना चाहिए। इन्हें किस रूप में वैसा करना चाहिए? (उत्तर-) अपने आश्रयभूत समस्त (प्रत्येक) वस्तु में भेद व संघात (अभेद) करना इनका स्वभाव हैइस रूप में, अर्थात् ये प्रत्येक वस्तु में कथंचित् भेद और कथंचित् अभेद स्थापित करते हैं। जैसे-किसी ने 'इन्द्र' ऐसा उच्चारण किया, तब अन्य ने (मन में) कहा- यह क्या नाम-इन्द्र को कहना चाहता है, या स्थापना-इन्द्र को, या द्रव्य इन्द्र को या फिर भाव-इन्द्र को? नाम-इन्द्र को कहना चाहता है तो द्रव्य की दृष्टि से ग्वाले के लड़के को, या किसान के बेटे को, या क्षत्रिय के बेटे को, या वैश्य के बेटे को या शूद्र के बेटे को कहना चाहता है? क्षेत्र की दृष्टिं से भी यह नाम-इन्द्र भारतवर्षीय है, या ऐरावतक्षेत्रीय है या महाविदेह में उत्पन्न है? इत्यादि-इत्यादि / काल की दृष्टि से भी यह अतीत काल में हुए इन्द्र को कहना चाहता है या वर्तमान काल के इन्द्र को या भावी इन्द्र को? इत्यादि / अतीतकाल के इन्द्रों में भी यह अब से अनन्त-अनन्त समय पहले होने वाले को या संख्याततम समय पहले होने वाले इन्द्र को? इत्यादि। भाव दृष्टि से भी यह कृष्ण वर्ण वाले को कहना चाहता है या गौर वर्ण वाले को, या लम्बे चौड़े आकार वाले को या मन्थर (टेढ़े, वक्र, झुके शरीर वाले) को? इत्यादि। Ma 116 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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