________________ प्रतिसमयं यदि न भवेदपरापररूपतेह वस्तूनाम्। न स्यात् पुराणभावो न युवत्वं नापि वृद्धत्वम्॥१॥ जन्मानन्तरसमये न स्याद् यद्यपररूपताऽर्थानाम् / तर्हि. विशेषाभावाद् न शेषकालेऽपि सा युक्ता // 2 // किं पिण्ड एव कार्यम्?।न, इत्याह- तथा सर्वं, यथा प्रतिसमयं भावात पिण्ड: कार्य तथा सर्वमपि घटपटादिकं वस्तुनिकरम्बम, तत एव हेतोः कार्यत्वमपि द्रष्टव्यमित्यर्थः। अनभिमतप्रतिषेधमाह- 'कज्जाभावाउ इत्यादि। पराभ्युपगतं कारणं कारणाख्यं वस्तु नास्ति। कुतः?, इत्याह- कार्याभावात्, तत्र कार्यत्वाऽभ्युपगमाभावात् प्रतिसमयभवनानभ्युपगमादित्यर्थः / इह यत् प्रतिसमयमपरापररूपेण न भवति तद् वस्तु नास्ति, यथा खरविषाणम्। प्रतिसमयमभवन्तश्चाऽभ्युपगम्यन्ते परैर्मृत्पिण्डादयः, तस्माद् न सन्तीति भावः॥ इति गाथार्थः // 71 // तदेवं नामादिनयानां परस्परविप्रतिपत्तिमुपदोपसंहारपूर्वकं मिथ्येतरभावं दर्शयितुमाह प्रतिक्षण यदि वस्तु में पर, अपर भाव न हो तो उनमें पुराना होना, युवा होना, वृद्ध होना, आदि व्यवहार असंगत हो जाएंगे // 1 // जन्म के बाद के क्षणों में यदि पदार्थ की अपररूपता (प्रतिक्षण परिणतिरूप भिन्नता) न हो तो 'विशेष' के अभाव से शेष काल में भी वह (अपररूपता) युक्तिसंगत नहीं होगी // 2 // (प्रश्न-) क्या (मिट्टी का) पिण्ड ही कार्य है? (उत्तर-) नहीं। उसी तरह समस्त घट, पट आदि वस्तु-समूह कार्य हैं, इसी कारण से 'कार्यत्व' भी उनमें है। इस मत से विरुद्ध मत के निषेष हेतु कहा- चूंकि (कारण) 'कार्य' रूप नहीं है- इत्यादि। अन्य मत द्वारा स्वीकृत कारण यानी ‘कारण' नामक वस्तु नहीं है- असद्प है। (प्रश्न) कैसे? (उत्तर-) 'कार्य' न होने से। तात्पर्य यह है कि उसमें 'कार्यत्व' (का सद्भाव) नहीं माना जा रहा है, यानी प्रतिक्षण (नव-नव पर्याय रूपों में होना- यह) 'भाव' नहीं माना गया है। इस संसार में जिस भी वस्तु में प्रतिक्षण पर, अपर (पूर्वभावी क्षण, पश्चाद्भावी क्षण आदि) भाव नहीं होता, वह नहीं है, असद्प है, उसी प्रकार जैसे गधे के सींग। अन्य मत में मृत्पिण्ड आदि (कारण) में प्रतिक्षण 'भाव' (कार्य) नहीं स्वीकारा गया है, इसलिए वे असद्भूत हैं। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 71 // (मिथ्या व सम्यक् नय) इस प्रकार, नाम आदि में परस्पर विरोध को प्रदर्शित कर, उपसंहार रूप में 'वे मिथ्या व सम्यक् कैसे होते हैं'- इसका निदर्शन कर रहे हैं Via 112-------- विशेषावश्यक भाष्य ----- -----