________________ वस्तुनः पर्याया धर्माः, तथाहि- अविशिष्टे इन्द्रवस्तुन्युच्चरिते नामादिकं भेदचतुष्टयमपि प्रतीयते- किमनेन नामेन्द्रो विवक्षितः, आहोस्वित् . स्थापनेन्द्रः, द्रव्येन्द्रः, भावेन्द्रो वा? इति। ततः सामान्यस्येन्द्रवस्तुनश्चत्वारोऽप्यमी पर्यायाः, इति नामादयोऽपि भावविशेषा एव, इति भावस्य वस्तुत्वसाधने न किञ्चिद् नः सूयते, पर्यायः, भेदः, भाव इत्यनर्थान्तरत्वात्। अथ विशिष्टार्थक्रियासाधकं भावेन्द्रादिकं भावमाश्रित्य वस्तुत्वं साध्यते, तथापि न काचित् क्षतिः, यतो भावेन्द्रादेर्भावस्य विशिष्टार्थक्रियानिवर्तकत्वे नामेन्द्रादिपर्यायाणामपि तद्रष्टव्यमेव, द्रव्यरूपतया पर्यायाणां परस्परमभेदात् / / इति गाथार्थः॥५५॥ अथवा भावमङ्गलादिकारणत्वाद् नामादीन्यपि भावमङ्गलादिरूपाण्येव, इति दर्शयन्नाह अहवा नाम-ठवणा-दव्वाइं भावमङ्गलंगाई। पाएण भावमङ्गलपरिणामनिमित्तभावाओ॥५६॥ [संस्कृतच्छाया:- अथवा नाम-स्थापना-द्रव्याणि भावमङ्गलाङ्गानि / प्रायेण भावमङ्गलपरिणामनिमित्तभावात् // ] कैसे? उत्तर है- चूंकि वे नाम आदि भी वस्तुतः वस्तु के पर्याय या धर्म ही तो हैं। जैसे- कोई सामान्य रूप से 'इन्द्र' इस शब्द को कहे तो (श्रोता को) नाम आदि चारों भेदों की प्रतीति संभावित है। वह सोचता है कि (वक्ता) नामइन्द्र, स्थापना-इन्द्र, द्रव्य-इन्द्र या भाव-इन्द्र -इनमें से किसको कहना चाहता है। इसलिए सामान्य इन्द्र वस्तु के ये चारों ही पर्याय हुए, और इस दृष्टि से नाम आदि भी भाव-विशेष ही सिद्ध होते हैं। इस प्रकार, 'भाव' को वस्तु मानने में हमारी कोई क्षति नहीं होती, क्योंकि पर्याय, भेद, भाव -ये एक ही अर्थ के वाचक हैं। अब यदि विशिष्ट अर्थक्रिया-साधक भावइन्द्र आदि-भाव को लेकर वस्तुत्व की सिद्धि की जाती है (यदि भावइन्द्र रूपी भाव को वस्तु माना जाता है) तो भी कोई क्षति या हानि नहीं है, कारण यह है कि जब भाव-इन्द्र आदि में विशिष्ट अर्थक्रिया-साधकता है तो वह नामइन्द्र आदि पर्यायों में भी है- ऐसा मानना होगा, क्योंकि द्रव्यदृष्टि से सभी पर्याय परस्पर अभिन्न होते हैं (अर्थात् द्रव्य में पर्याय अभिन्न रूप से रहते हैं)॥ यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 15 // (नाम आदि की भावमङ्गलरूपता) ___ अथवा भावमङ्गल के कारण होने से नाम आदि भी भावमङ्गल रूप ही हैं- यह (आगे की गाथा में) कह रहे हैं (56) अहवा नाम-ठवणा-दव्वाइं भावमङ्गलंगाइं। पाएण भावमङ्गलपरिणामनिमित्तभावाओ || [(गाथा-अर्थः) अथवा नाम, स्थापना, द्रव्य भी भावमङ्गल ही हैं, क्योंकि वे प्रायः भावमङ्गल परिणाम में निमित्त होते हैं।] No- 90 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------