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________________ अक्षर दर्पण में आचार्य श्री सुभद्र मुनि जी भारतीय संतों की परम्परा में विद्यावाचस्पति आचार्य प्रवर गुरुदेव श्री सुभद्र मुनि जी महाराज का नाम विशिष्ट आदर भाव से लिया जाता है। आपकी सृजनशीलता, रचनात्मक कार्यों को लगातार * * वृद्धिंगत करते हुये लम्बे समय से समाज को जोड़ने की दिशा में निरन्तर गतिशील है। बुद्धिजीवी वर्ग * * में धर्म-जागरण तथा जैन-अजैन सभी बन्धुओं को जैन धर्म-दर्शन एवं साहित्य से आपश्री ने परिचित * कराया है। . आपका जन्म.12 अगस्त, 1951 को हरियाणा के रिंढाणा ग्राम में धर्मनिष्ठ श्री रामस्वरूप जी * वर्मा के घर धर्मशीला श्रीमती महादेवी जी की पुण्य कुक्षी से हुआ। 9 वर्ष की बाल वय में आप * योगिराज पूज्य गुरुदेव श्री रामजीलाल जी महाराज एवं संघशास्ता शासन-सूर्य गुरुदेव श्री रामकृष्ण जी / * महाराज के चरणों में आये। 16 फरवरी, 1964 को जीन्द नगर (हरियाणा) में आपने मुनि-दीक्षा * अंगीकार की। .. - मुनि-धर्म को अपनी सांसों में जीते हुये आपने विविध भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। + आगम, निगम, पुराण, व्याकरण, काव्य, ज्योतिष, मंत्र एवं विविध धर्म-दर्शनों का गहन अध्ययन + * किया। विनय धर्म आपका सदा उपास्य है। आपने गुरु चरण-कमलों की भ्रमर की तरह उपासना * की। तभी लाखों दृगों ने आपको श्रवण कुमार और आधुनिक गौतम की तरह देखा। * बचपन से ही आदर्श साहित्य में रुचि व बाल-संस्कारों में उन्नति के प्रति आपका मानस * चिन्तनशील रहा। उसी चिन्तन के परिणामस्वरूप आप श्री ने बाल-साहित्य की विशाल शृंखला का * निर्माण किया। आप द्वारा रचित बाल-साहित्य की श्रृंखला में महावीर के उपासक, मुक्ति के राही, * सुभद्र शिक्षा 5 भाग, शैक्षणिक श्रृंखला में अनेक कहानियां, नाटक, लघु उपन्यास, जीवनी, संस्मरण * एवं प्रबोध कथायें संग्रहीत हैं। जीवनी-साहित्य, आगम-आधारित रचनाओं की प्रस्तुति के साथ * 'उत्तराध्ययन सूत्र' की भाषा-टीका सफलतापूर्वक की है। हरियाणवी जैन कथायें, हरियाणवी गद्य * की प्रमुख कथा-कृति होने का गौरव रखती है। आप एक सहज कवि भी हैं। विश्ववन्द्य महावीर के * जीवन चरित्र पर ललित-गद्य आपके साहित्य का उज्ज्वल प्रमाण है। आपकी नवीन कृतियों में जैन * * चरित्र कोष है, जिसमें 1500 से अधिक महापुरुषों के चरित्रों का अंकन है। अहिंसा विश्व कोष (तीन * खण्ड वैदिक, जैन एवं सर्वधर्म) में अहिंसा के सिद्धान्त एवं स्वरूप की अनुपम प्रस्तुति विभिन्न * धर्मग्रन्थों के आधार से की गयी है, हिंसाग्रस्त वातावरण में यह एक प्रासंगिक हस्तक्षेप है। ******************* [9] *******************
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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