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________________ मङ्गलं तस्यान्यमङ्गलकरणाभावत इयं नेष्यते / तत्र दूषणमाह - 'न मङ्गलमिति' शास्त्रमङ्गलीकरणार्थमुपात्तमङ्गलस्याऽनवस्थाभयेनाऽन्यमङ्गलाकरणेन तद् मङ्गलं न स्यात्, अन्यमङ्गलाभावात्, शास्त्रवत्, इत्यर्थः; इदमुक्तं भवति- यदि मङ्गलस्याऽपरमङ्गलविधानाभावेनाऽनवस्था नेष्यते, तर्हि यथा मङ्गलमपि शास्त्रमन्यमङ्गलेऽकृते मङ्गलं न भवति, तथा मङ्गलमप्यन्यमङ्गलेऽविहिते मङ्गलं न भवेत्, न्यायस्य समानत्वात्। तथा च किमनिष्टं स्यात्?, इत्याह- अमङ्गलता मङ्गलाभाव: शास्त्रे यद् मङ्गलमुपात्तं तदन्यमङ्गलशून्यत्वाद् न मङ्गलम्, तस्य च मङ्गलत्वाभावे शास्त्रमपि न मङ्गलम्, इति व्यक्त एव मङ्गलाभाव . इति भावः। वा शब्दः पक्षान्तरसूचक:- अनवस्था, मङ्गलाभावो वेत्यर्थः॥ इति गाथार्थः // 15 // अत्रोत्तरमाह सत्थत्थन्तरभूयम्मि मंगले होज कप्पणा एसा। सत्थम्मि मंगले किं अमंगलं काऽणवत्था वा?॥१६॥ [संस्कृतच्छाया:- शास्त्रार्थान्तरभूते मङ्गले भवेत् कल्पनैषा / शास्त्रे मङ्गले (मङ्गलरूपे) किममङ्गलं काऽनवस्था वा? // ] प्रदर्शित कर रहे हैं- न मङ्गलम् / अर्थात् अनवस्था-भय से शास्त्र-सम्बन्धी मङ्गल-विधान हेतु किये गये प्रथम मङ्गल के लिए अन्य मङ्गल अपेक्षित नहीं है- (ऐसा तुम्हारी ओर से समाधान मान भी लें) तो ऐसी स्थिति में (प्रथम) मङ्गल अन्य मङ्गल के अभाव में उसी प्रकार मङ्गलरूप नहीं हो पाएगा जिस प्रकार शास्त्र किसी (प्रथम) मङ्गल के अभाव में मङ्गलरूप नहीं होता- यह भाव है। तात्पर्य यह है कि (प्रथम) मङ्गल के लिए कोई अन्य (दूसरा) मङ्गल-विधान न करते हुए अनवस्था का निवारण किया जाता है तो, जिस प्रकार मङ्गल रूप शास्त्र भी (प्रथम) मङ्गल के अभाव में मङ्गलरूप नहीं हुआ, उसी प्रकार वह (प्रथम) मङ्गल भी किसी अन्य (दूसरे) मङ्गल के अभाव में मङ्गलरूप नहीं हो पाएगा, क्योंकि नियम तो(सर्वत्र) एक जैसा ही मानना होगा। तब, कौन-सा अनिष्ट होगा? इस (जिज्ञासा) के स्पष्टीकरण हेतु कहा- अमङ्गलत्वात् / अर्थात् मङ्गलरूपता ही नहीं हो पाएगी। तात्पर्य यह है कि शास्त्र में जो (प्रथम) मङ्गल किया जाता है, वह जब किसी अन्य (दूसरे) मङ्गल के अभाव में, मङ्गलरूप नहीं होगा तो शास्त्र की भी मङ्गलरूपता नहीं हो पाएगी। इस प्रकार, मङ्गलता का अभाव स्पष्ट है। 'वा' शब्द यहां पक्षान्तर (अन्य विकल्प) का सूचक है, अर्थात् या तो 'अनवस्था' होगी, या फिर मङ्गलरूपता का अभाव होगा -यह भाव है। यह गाथा का अर्थ हुआ // 15 // पूर्व प्रश्न (पूर्वपक्ष) का उत्तर दे रहे हैं (16) सत्यंतरभूयम्मि मङ्गले होज कप्पणा एसा। सम्थम्मि मङ्गले किं अमङ्गलं काऽणवत्था वा? [(गाथा-अर्थः) यदि शास्त्र से मङ्गल पृथक् होता, तब तो यह (अनवस्था आदि की) कल्पना सम्भव थी। (किन्तु) जब शास्त्र स्वयं मङ्गलरूप है, तब (वहां) अनवस्था या (उसकी) अमङ्गलरूपता कैसे (सिद्ध की जा सकती है)?] ----- विशेषावश्यक भाष्य -- ---- 39 र
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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