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________________ *************** **** ****************************************** थे उनका पुनरावर्तन नहीं किया गया है। उसके लिए आवश्यक नियुक्ति देखने का निर्देश किया गया है। * स्पष्ट है कि नियुक्ति साहित्य को ठीक से समझने के लिए आवश्यक नियुक्ति का सांगोपांग अध्ययन * आवश्यक है। समय के साथ-साथ साधकों की ग्रहण शक्ति न्यून होती गई। आगमों के सरलीकरण के * * लिए रची गई नियुक्तियों की भाषा भी साधकों को दुरूह प्रतीत होने लगी। इसी दुरूहता के. निदानस्वरूप भाष्य-युग की शुरुआत हुई। विद्वान मुनिराजों ने मूल आगमों एवं नियुक्तियों के सरलीकरण के लिए उन पर भाष्यों की रचनाएं की। आगम पदों एवं मूलसूत्रों की इस व्याख्यात्मक * शैली से आगम हार्द को हृदयंगम करना साधकों के लिए आसान हो गया। भाष्यकारों में जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण (वि.की 7वीं शती) का प्रमुख स्थान है। उन्होंने आवश्यक सूत्र के प्रथम अध्ययन 'सामायिक सूत्र' पर एक बृहद् (3603 गाथा प्रमाण) भाष्य की रचना की। यही भाष्य वर्तमान में "विशेषावश्यक भाष्य" नाम से विश्रुत है। कालान्तर में इसी ग्रन्थ पर आचार्य मलधारी हेमचन्द्र (वि. की 12 वीं शती) ने लगभग 28000 श्लोक प्रमाण 'शिष्य हिता' नामक बृहद्वृत्ति लिखी। आचार्य श्री ने भाष्य में आए सभी विषयों को अत्यन्त प्रवीणता एवं * विचक्षणता से विश्लेषित किया है। विविध दार्शनिक विषयों को भी बहुत ही सरल और सटीक * * भाषा-शैली में प्रस्तुत कर आचार्य श्री ने अपनी सारस्वत प्रतिभा का परिचय दिया है। उपरोक्त अध्ययन की फलश्रुति के रूप में स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि विशेषावश्यक भाष्य * एक उच्चकोटि का ग्रन्थ है। विगत 14 वर्षों से यह ग्रन्थ विद्वानों का कण्ठहार बना हुआ है। अपने रचनाकाल से लेकर वर्तमान तक इस ग्रन्थ के प्रति विद्वानों एवं मुमुक्षुओं का आकर्षण निरन्तर बना * रहा है। परन्तु यह चिन्तन (चिन्ता) का विषय है कि अद्यतन इस ग्रन्थ का राष्ट्रभाषा में सांगोपांग * अनुवाद नहीं हो पाया है। इसी चिन्तन को समक्ष रखते हुये श्रद्धेय गुरुदेव आचार्य श्री सुभद्र मुनि जी महाराज ने इस * दिशा में भागीरथ प्रयास किया है। नि:संदेह यह एक वहत्तम कार्य है और इसके लिए तत्वान्वेषिणी। प्रज्ञा के साथ-साथ असीमित समय की भी अपेक्षा है। समय की सीमाओं में श्रद्धेय आचार्य श्री भी बन्धे हुये हैं। वे एक धर्मसंघ के आचार्य हैं और अनेक सामाजिक अपेक्षाओं का भी उन्हें निर्वहन करना होता है। इसीलिये श्रद्धेय आचार्य श्री ने समय की सीमाओं को स्वीकारते हुये इस बृहद् ग्रन्थ पर विशाल व्याख्या लिखने की अपनी भावना को अपने भीतर ही आत्मसात् कर लिया है। गुरुदेव ने - इस ग्रन्थ पर यथारूप अनुवाद प्रस्तुत कर हिन्दी भाषा भाषियों की उस प्यास का उपशमन अवश्य * किया है जो प्राकृत और संस्कृत भाषा नहीं जानते हैं। __विशेषावश्यक भाष्य पर प्रस्तुत यह सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद निःसन्देह विद्वद्वर्ग को इस * दिशा में चिन्तन के लिए प्रेरित करेगा। साथ ही अप्रकाशित प्राचीन अमूल्य ग्रन्थरत्नों को राष्ट्रभाषा में उपलब्ध कराने के लिए प्रकाश-प्रदीप का भी काम करेगा। इस महनीय ग्रन्थ के साथ एक लघु : सहयोगी के रूप में जुड़कर मैं स्वयं भी कृतकृत्यता का अनुभव कर रहा हूँ। -अमित मुनि *** ******************* [6] *******************
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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