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________________ 196 कथा पृष्ठ पंक्ति 85 87 17 85 8724 86 89 शब्द शब्दार्थ आगामिणीए भावना२ तिणकुडीयरम्मि बासनी सुपडीमा विमाउए અપર માતાએ जलियम्मिपणाने सिलं विउब्वित्था शी। विवा उवद्दवरहियं उपद्रव २हित. अवाउलो व्याकुल थय। विना सासयसुहकंखिरा शाश्वत सुपने 27 // 2 // कहा-८५ कीसंति हु:भी थाय छ हासं હાસ્ય समलिगाओ સમડીથી डक्का દંશ મરાયો ओसढाई ઔષધો सत्तसीलो શકિતશાળી सङ्कलो વાઘ अच्चुयसग्गम्मि अय्युत विलोमi तुरियनिरयम्मि योथी न२७i दाणी / દાનવીર विवेगवंतो વિવેકવાળો सत्तुंपिव शत्रुनी ठेभ भायरत्तणेणधु५९uथी सद्दकोसो-२ (कथानुक्रमेण) कथा | पृष्ठ | पंक्ति शब्द शब्दार्थ 84 18 महेइ ઈચ્છે છે 84 84 19 मायाइ માયાવી 84 84 19 विणमिरो નમ્ર 84 84 20 समलिगा સમડી 84 84 27 कहा-८६ कपद्दिसड्डस्स કપર્દી શ્રાવક 84 85 1 1 थीवेसभूया સ્ત્રીવેશ પહેરેલી 84 6 | दोहणीआ દૂધ દોહતા गोदोहणाओ ॥य होथी. 2 | पमुइओ मानहित थये 85 86 5 चरमुहेणं गुप्त वेष 85 86 7 | भोयणसंभारं माननी तैयारी 85 87 5 5 | सव्वपयारा सर्व ५२नी. | सिरिजुगाइजिण- श्रीयुशन 6 माहप्पं माहात्म्य 85 87 7 | अणुमोयंतो अनुमोइन। २तो कहा-८७ 85 87 10 तेउलेसा ती वेश्या 85 87 12 पाउब्भूया 2 2 85 87 13 रुक्खसाहुवविट्ठा वृक्षनी // 52 बेडेमी बलागा પક્ષી 17 विट्ठ વિષ્ટા 228m 9 Mms w92gg 86 90 5 86 90 6 86 90 7 86 90 10 86 90 12 86 90 12 39 33 9 2022 87 90 24 87 90 24 87 90 87 90 24 87 90 24
SR No.004269
Book TitlePaiavinnankaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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