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________________ संजमविसुद्धीए सइ अपमत्तभावो कायव्वो इह सयंभुदत्तसाहुणो कहा-१०६ 147 CONNN 0 'हं हो एयं वरागं मुंचह, थी-बाल-वुड्ढ-विद्धंस-कारीणं इमं वेरिवग्गं अणुसरह मा चिरावेह, एसा पल्ली हम्मइ, इमाई मंदिराई पि दज्झंति इअ उल्लावं सोचा सयंभुदत्तं मोत्तूणं सुमरियचिरवेरिसुहडसंपाया ते पुरिसा पवणजइणा जवेणं कच्चाइणीगिहाओ झत्ति निहरिया / तइया सयंभुदत्तो 'अज्जेव अहं जाओ, अज्जेव य सयलसंपयं पत्तो' इअ चिंतंतो तुरियं चामुंडाए गेहाओ अवक्कंतो / सो य भीसणचिलायभयतरलिओ गिरिकुहरमज्झभागेणं बहलतरुवल्लिपडलाउलेणं अपहेणं वच्चंतो भुयंगमेण खद्धो, तया तस्स महाधोरा वेयणा समुपन्ना / तेण परिचिंतियं-नूणं एण्डिं अहं नस्सामि, जइ कहमवि चिलाएहिं पमुक्को ता कयंततुल्लेणं भुयंगेणं अहं डसिओम्हि, अहह ! विहिसरूवं विचित्तं / अहवा जम्मो मरणेण, जोव्वणं सह जराए संजोगो / सममेव वियोगेणं, उप्पज्जइ किमिह सोगेणं ? / / 2 / /
SR No.004269
Book TitlePaiavinnankaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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