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________________ मंगलसिलोगा जएउ सो महावीरो, केवलन्नाणरस्सिणा / मोहतमं विणासित्ता, मोक्खमग्गपयंसगो / / 1 / / दिंतु गोयम-सोहम्म-प्पमुहा गणिणो वरा / सुयलद्धिधरा धीरा, भव्वाणं सययं सुयं / / 2 / / अण्णे जिणंतु गच्छेसा, सासणे अपुव्वदीवगा / जाण सरणमेत्तेण, होइ नाणं पयासियं / / 3 / / देसणा य जिणिंदाणं, सव्वभासाविवट्टिणी / विराएज मणे निचं, भत्ताणं इट्ठदाइणी / / 4 / / जएज नेमिसूरिंदा, आबालब्बंभयारिणो / कयंबाइसुतित्थाण-मुद्धारजिअ-सजसा / / 5 / / पसीएज सया मज्झ, विनाणो सूरिवो गुरू / पबोहदाणओ जेणु-द्धरिओ हं भवद्धिओ / / 6 / / नीइ-सत्थप्पबोहटुं, रएजा पाइए सुहं / विनाणकहमेयं हं, कित्ति-असोगपत्थिओ / / 7 / /
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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