________________ 102 पाइअविनाणकहा-१ जाव विक्कमसारमुहं पलोयइ, ताव उज्जियभोयणकज्जेण तेण सो हारो नवसुत्ततंतुसज्जो खणेण पगुणो कओ / पच्छा दोवि तं भोयणं सुहं भुत्ता / निवइणा परिभाविअं–'सञ्चो जणप्पवाउ' त्ति / एवं पुण्णसारो पुण्णुदएण ववसायं विणा सुहं पत्तो, विक्कमसारो अ तारिसपुण्णं विणा ववसाएण सोक्खं पावीअ / / उवएसो पुण्णविक्कमसंजुत्तं, सेट्टिपुत्ताण नायगं / सुणित्ता ताण पत्तीए, उजमेह तहा सया / / 2 / / पुण्ण-विक्कमपहावे पुण्णसार-विक्कमसाराणं बायालीसइमी कहा समत्ता / / 42 / / -उवएसपयाओ