________________ 96 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 34-37 ये देव शान्त आकृतिवाले, अधिक सुन्दर मुखाकृतिवाले और मस्तक पर जगमगाते मुकुटोंको धारण करनेवाले हैं / 6. किंपुरुष निकायके देव-१. पुरुष, 2. सत्पुरुष, 3. महापुरुष, 4. पुरुषवृषभ, 5, पुरुषोत्तम, 6. अतिपुरुष, 7. महादेव, 8. मरुत् , 9. मेरुप्रभ और 10. यशस्वन्त इस तरह दस प्रकारके हैं। / ये देव भी अधिक सुन्दर और मनोहर मुखाकृतिवाले हैं, इनकी जंघाएँ और भुजाएँ अत्यन्त शोभायमान हैं एवं ये विविध प्रकारके आभूषणों और विचित्र प्रकारकी मालाओं और लेपको धारण करनेवाले होते हैं। 7. महोरग निकायके देव भी 1. भुजंग, 2. भोगशाली, 3. महाकाय, 4. अतिकाय, 5. स्कंधशाली, 6. मनोरम, 7. महावेग, 8, महेष्वक्ष, 9. मेरकांत और. . 1.0. भास्वंत इस तरह दस प्रकारके हैं। ये देव महान् वेगवाले, महान् शरीरवाले, सौम्यदर्शन, महाकाय, विस्तृत और मजबूत गरदन-स्कंधवाले और चित्र-विचित्र आभूषणोंसे विभूषित हैं। 8. गंधर्व निकायके देव-१. हाहा, 2. हूहू, 3. तुंबरु 4. नारद, 5. ऋषिवादक, 6. भूतवादक, 7. कादम्ब, 8. महाकादम्ब, 9. रैवत, 10. विश्वावसु, 11. गीतरति और 12. गीतयश ऐसे बारह प्रकारके हैं। ये देव भी प्रियदर्शनवाले, सुन्दर रूपवाले, उत्तम लक्षणोंवाले,, सुन्दर मुखवाले, मस्तक पर मुकुट पहननेवाले और गले में हार धारण करनेवाले होते हैं। [34-35] . चौबीस तीर्थकरके यक्ष-यक्षिणियाँ यक्ष-निकायके होनेसे व्यंतर जातिके होते हैं। साथ ही छप्पन ११४दिक्कुमारिकाए और सरस्वती ( श्रुतदेवी ) ये भी व्यन्तर निकायकी कही जाती हैं। अवतरण-आठों प्रकारके व्यन्तर निकायके इन्द्रोंके नाम. कहते हैं / काले य महाकाले, सुरूव पडिरूव पुण्णभद्दे य / तह चेव माणिभद्दे, भीमे य तहा महाभीमे // 36 // किन्नर किंपुरिसे सप्पुरिसा, महापुरिस तह य अइकाए / महाकाय गीयरई, गीयजसे दुन्नि १२°दुन्नि कमा // 37 / / गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 36-37 / / 119. आवश्यकचूर्णिमें 'बहूहिँ वाणमंतरेहिं ' के पाठसे ज्ञात होता है। [ स. प्र. 437] 120. दोन्नि दोन्नि इत्यपि पाठः /