________________ 82 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 22-23 ___ इसके अतिरिक्त श्री भगवती सूत्रमें [श-१४, उ, ८]-'अत्थिणं भंते' इत्यादि सूत्रके विवरणमें भी बताया है कि-एक देव एक पुरुषकी बरौनी पर दिव्य और अति उत्तम बत्तीसबद्ध ऐसा नाटक रच सकते हैं। कितनी दिव्य शक्ति ? यह सोचें ! फिर भी उस पुरुषको तनिक भी बाधा नहीं होती, ऐसी-ऐसी शक्तिवाले वे देव हैं। इस कथनकी पुष्टि करता हुआ प्रसंग दशार्णभद्रराजा आदिके दृष्टान्तोंमेंसे भी जान सकते हैं। __ प्रत्येक इन्द्रकी क्या-क्या और कैसी-कैसी शक्तियाँ हैं ? यह सिद्धान्तोंसे जान लें। . ग्रन्थविस्तार हो जानेके कारण यहाँ नहीं दिया / [22] ___ भवनपति निकायके बीस इन्द्रोंके नामका यंत्र / . ___निकायके नाम दक्षिणेन्द्र ____ उत्तरेन्द्र 1. असुरकुमार निकाय | 1. चमरेन्द्र 2. बलीन्द्र 2. नाग , , 3. धरणेन्द्र 4. भूतानंदेन्द्र 3. सुवर्ण , , 5. वेणुदेवेन्द्र 6. वेणुदालीन्द्र | 7. हरिकान्तेन्द्र 8. हरिस्सहेन्द्र 9. अग्निशिखेन्द्र 10. अग्निमानवेन्द्र 11. पूर्णेन्द्र 12. विशिष्टेन्द्र 7. उदधि , , 13. जलकांतेन्द्र 14. जलप्रमेन्द्र 8. दिशि , , 15. अमितगतीन्द्र 16. अमितवाहनेन्द्र 9. पवन ,, ,, 17. वेलंबेन्द्र 18. प्रभंजनेन्द्र | 10. स्तनित ,, ,, 19. घोषेन्द्र 20. महाघोषेन्द्र अवतरण-असुरकुमारादि भवनपतिदेवोंके दक्षिणदिशामें प्रवर्त्तमान भवनोंकी संख्या कहते हैं। चउतीसा-चउचत्ता, अद्रुतीसा य चत्त-पंचण्हं / पन्ना-चत्ता कमसो, लक्खा भवणाण दाहिणओ / / 23 / / गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 23 // विशेषार्थ-पूर्व कहे गये दसों निकायोंमें दक्षिण तथा उत्तर विभागमें देवोंके रहने के भवन हैं। जिस तरह एक राजा किसी एक नगरका स्वामी होता है, उसी तरह हरएक 6. द्वीप , "