________________ * २४वाँ वेदवार . .345 . .3. नपुंसकवेद-जिस प्रकार पित्त तथा श्लेष्म (कफ)के दरदीको मज्जिकके प्रति सहजरूपसे रूचि-आकर्षण प्रकट होता है, उसी प्रकार नपुंसकवेद कर्मके उदयसे स्त्रीपुरुष दोनोंके प्रति मैथुनादि सेवनकी स्वाभाविक इच्छा प्रकट होती है। प्रकट होनेके बाद यह इच्छा इतनी तो प्रबल बनती है कि इसका शमन जल्दी होता नहीं है और लम्बे काल तक सेवनके बाद ही तृप्त होता है। इसलिए इस वेदकी इच्छाको 'नगरकी आग'की उपमा दी गयी है। जिस प्रकार नगरकी आग एक साथ-संलग्न वसवाटवाले–बस्तीवाले घरोंको एकके बाद एक सुलगाती जाती है और बहुत लम्बे कालके बाद बुझ जाती है। यहाँ एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि पुरुष, स्त्री या नपुंसकको पहचाननेके लिए कोई चिह्न (लिंग) है क्या ? तो उत्तर है-हाँ है। पुरुषलिंग-शरीरमें विद्यमान सात धातुओंमेंसे 'शुक्र' (वीर्य) धातुके साथ साथ चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ, सीना तथा पैर पर बाल, शारीरिक कठोरपन, ताकत, पराक्रम, निडरता, लज्जाशीलताका अभाव, गंभीरता तथा धैर्य इत्यादि होता है। और स्पष्ट मूत्र द्वार युक्त पुरुष चिह्न अर्थात् लिंगाकार गुप्तेन्द्रिय होती है, उसे पुरुष-नर कहा जाता है। . स्त्रीलिंग-इसमें यहाँ सात धातुओंमेंसे शुक्रके स्थान पर 'रज' होती है। योनि, शारीरिक सुकोमलता, दाढ़ी-मूंछका पूर्ण अभाव, छाती-पैर पर मी वालका बहुधा अभाव, शारीरिक सुकोमलपन, नाजुकता, शिथिल मनोबल, लज्जा, तुच्छता तथा चपलता ( चांचल्य) आदि अनेक गुण होते हैं। साहजिक चपलता, साहस, माया, कपट, विना वजह असत्य बोलनेकी बुरी आदत, शारीरिक शृंगारमें अधिक आसक्ति इत्यादि गुण जिसमें होते हैं उसे स्त्री-नारी कहते हैं। नपुंसकलिंग-इसमें पुरुष और स्त्री दोनोंके चिह्नोंका अस्तित्त्व-नास्तित्त्व देखा जाता है। अर्थात् इसमें कुछ चिह ( लक्षण ) पुरुषके मिलते भी है और नहीं भी मिलते हैं। उसी प्रकार स्त्रीके भी कुछ लक्षण मिलते भी है तो कुछ नहीं भी मिलते हैं। अर्थात् इसमें दोनोंकी मिश्रता देखी जाती है। यद्यपि नपुंसकलिंगके मी अनेक भेद हैं। लेकिन यहाँ दो भेदोंका ही दिग्दर्शन पर्याप्त है। -- योनि-स्तनके साथ साथ पुरुषका चिह्न तथा मूंछ भी हो तो उसे 'स्त्री-नपुंसक' और योनिकी जगह पर अगर पुरुष चिहके साथ दाढ़ी-मूंछ तथा स्त्री लक्षण स्वरूप डरपोक ब. सं.४४